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"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 2" के अवतरणों में अंतर

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       उठ दौडे पैर पयादे ही,
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       '''परिचय और स्थिति '''
                    झट पट से प्रभु बाहर आये।
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          बोले शुभ दिवस आज का है,
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भक्त सुदामा ब्रह्मण थे,  
                    हम  प्रेमी  के दर्शन  पाये।
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                  रहते थे देश विदर्भ नगर,
प्रीती व रीति न छानी छुपे झट प्रीतम कृष्ण सखा ढिग आये।
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मीत प्रभु के सच्चे थे,
देखत ही उपज्यो सुख आनन्द वो कविता कवि कौन  बनाये।
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              पत्नि भी पतिव्रता थी घर |
अंग व अंग  मिलाकर  नैनन, नैनन से प्रभु  नीर  बहाये।
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कुछ किस्सा उनका बयां करू,
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह  सुधामय  बोल  सुनाये।
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                छांया दारिद्र की घर पर थी,
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वो भगवत रूप परायण थे,
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                आशा उन्हीं पर निर्भर थी |
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थी बुद्धिमती पतिव्रता वाम,
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                गुणवान चतुर सुन्दर नारी,
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पति इच्छा अनुकूल चले,
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              थी श्रीपति को अतिशय प्यारी |
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वो दुःख सुख सभी भोगती थी,
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              पर बात न जिह्वा पर आती,  
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नित मीठे बैन बोलती थी,
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            नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती |
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  '''पति -पत्नी वार्ता'''
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इक रोज कहा कर जोर दोऊ,
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            पति भूख से प्राण निकलते हैं,
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छोटे-छोटे छौना मोरे,
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            बिन अन जल के कर मलते हैं |
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यह दशा देख अकुलाय रही,
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                  नहीं बच्चों को भी रोटी है,
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रह सकते नहीं प्राण इनके,
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              अति कोमल है,वय छोटी हैं |
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इसलिए कृपा कर प्राणनाथ,
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            तुम नमन करो अविनाशी को,
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मत करो देर, बस जाय कहो,
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              सब हाल द्वारिका वासी को |
  
        प्रभु मिले गले से गला लगा 
 
                  चरणोदक लीनो धो धोकर।
 
        बोले  प्रेम  भरी  वाणी
 
                  पुछे हरि बतियां रो-रो कर।
 
        निज  आसन पे बैठा करके
 
                सब  सामग्री  कर में लीनी।
 
        चित प्रसन्नता से कृष्ण चन्द्र
 
                विविध  भांति  पूजा  कीनी।
 
        बोले न मिले अब तक न सखा
 
                तुम रहे कहां सुध भूल गये।
 
        आनन्द से क्षेम कुशल  पूछी
 
                प्रभु प्रेम हिंडोले  झूल  गये।
 
        रुक्मणि स्वयं सखियां मिलकर
 
                  सब प्रेम से पूजन  करती थी।
 
        स्नान  कराने  को  उनको
 
                  निज हाथों  पानी  भरती थी।
 
        चंवर  मोरछल  करते  थे
 
                  सेवा से  दिल न  अघाते थे।
 
        निज  प्रेमी  के  काम  कृष्ण
 
                  सब खुद ही करना चाहते थे।
 
        यह आनंद अद्भुत देख-देख,
 
              द्विज  सोचे यह जाने न मुझे |
 
        करते हैं स्वागत धोखे में,
 
                  प्रभु शायद पहचाने न मुझे |
 
        भक्त की कल्पना सभी,
 
                    उर अन्तर्यामी जान गए |
 
        भक्त सुदामा के दिल की,
 
                      बाते सब पहचान गए |
 
        बोले घनश्याम याद है कुछ,
 
                जब हम-तुम दोनों पढ़ते थे |
 
        थी कृपा गुरु  की अपने पर,
 
                  पढ़-पढ़ के आगे बढ़ते थे |
 
        है बात याद बन में भेजे,
 
                  सब हाल कहे प्रभु दर्शाके |
 
        उस समय रहे बन माहिं दोऊ,
 
                      घबराए मारे वर्षा के |
 
        दिल चिंता बढ़ी गुरूजी के,
 
                  कारण आंधी के आने से |
 
        बिजली की तड़क निराली थी,
 
                और पानी के बढ़ जाने से |
 
        एक वृक्ष की ओट में, तुम हम बैठे जाय |
 
        वर्षा रुकती थी नहीं, लीनी क्षुधा सताय |       
 
 
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21:22, 10 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

      परिचय और स्थिति

भक्त सुदामा ब्रह्मण थे,
                   रहते थे देश विदर्भ नगर,
मीत प्रभु के सच्चे थे,
              पत्नि भी पतिव्रता थी घर |
कुछ किस्सा उनका बयां करू,
                छांया दारिद्र की घर पर थी,
वो भगवत रूप परायण थे,
                 आशा उन्हीं पर निर्भर थी |
थी बुद्धिमती पतिव्रता वाम,
                गुणवान चतुर सुन्दर नारी,
पति इच्छा अनुकूल चले,
              थी श्रीपति को अतिशय प्यारी |
वो दुःख सुख सभी भोगती थी,
               पर बात न जिह्वा पर आती,
नित मीठे बैन बोलती थी,
            नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती |

       
  पति -पत्नी वार्ता

इक रोज कहा कर जोर दोऊ,
             पति भूख से प्राण निकलते हैं,
छोटे-छोटे छौना मोरे,
             बिन अन जल के कर मलते हैं |
यह दशा देख अकुलाय रही,
                  नहीं बच्चों को भी रोटी है,
रह सकते नहीं प्राण इनके,
               अति कोमल है,वय छोटी हैं |
इसलिए कृपा कर प्राणनाथ,
             तुम नमन करो अविनाशी को,
मत करो देर, बस जाय कहो,
               सब हाल द्वारिका वासी को |