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"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 5" के अवतरणों में अंतर

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सत्य विचार कहूँ सुनारी प्रिय यो जग झूठ मुझे हरसावे |
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प्रीति बिना परमेश्वर के धृक  है धन जो धनवान कहावे ||
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धन्य उन्हें धन राम अमूल्य की खोज लगा कर मौज उडावे |
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ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लखावे  ||
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भक्त वही भगवान भजे धन दौलत पाय न राम भुलावे |
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दान करे सनमान करे नर संतन को निज शीश झुकावे ||
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मन्दिर बाग़ तड़ाग बनाकर जीवन को जग माही बितावे||
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ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लखावे ||
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पति देव विनती करहुँ मान लेहु मम बात |
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दुःख संकट सब टारी हैं वह त्रिभुवन के नाथ ||
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स्वामी ने सब ठीक कहा,
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        जो हाल द्रव्य के  होते हैं,
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है दिल में दर्द यही मेरे,
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          जब भूखे बच्चे सोते हैं |
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है हाल वही  पति जागने पर,
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      जो हाल काल में है गुजरा,
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हर रोज नहीं देखा जाता,
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      गम खाली से यह पेट भरा |
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जाओ जल्दी देरी न करो,
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          वह दीनानाथ कहाते हैं,
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भक्तों के हितकारी बन,
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        बिगरी को शीघ्र बनाते है |
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तुम धन के हित सकुचाते हो,
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        दर्शन हित ही तो जाओ,
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बिन मांगे ही दे देंवेगे,
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    द्रव्य लेकर नाथ शीघ्र आओ |
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प्रसन्न चित्त से सेवा कर,
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    नित गोविन्द के गुन गाऊँगी,
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तुम कृष्ण चन्द्र के गुन गाना,
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        सेवा कर प्रभु रिझऊँगी |
  
चंवर मोरछल करते थे,
 
        सेवा से दिल न अघाते थे |
 
यह आनन्द अद्भुत देख-देख,
 
  द्विज जाने यह जाने न मुझे |
 
करते हैं स्वागत धोके में,
 
    प्रभु शायद पहचाने न मुझे |
 
भक्त की कल्पना सभी,
 
        उर अन्तर्यामी जान गये |
 
भक्त सुदामा के दिल की,
 
      बाते सब ही पहचान गये |
 
बोले घनश्याम याद है कछु,
 
    जब हम तुम दोनों पढ़ते थे |
 
थी कृपा गुरु की अपने पर,
 
    पढ़-पढ़ के आगे बढ़ाते थे |
 
 
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18:52, 28 दिसम्बर 2016 के समय का अवतरण

सत्य विचार कहूँ सुनारी प्रिय यो जग झूठ मुझे हरसावे |
प्रीति बिना परमेश्वर के धृक है धन जो धनवान कहावे ||
धन्य उन्हें धन राम अमूल्य की खोज लगा कर मौज उडावे |
ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लखावे ||

भक्त वही भगवान भजे धन दौलत पाय न राम भुलावे |
दान करे सनमान करे नर संतन को निज शीश झुकावे ||
मन्दिर बाग़ तड़ाग बनाकर जीवन को जग माही बितावे||
ऐ प्रिय तू मति मोय कहे कछु कृष्ण बिना नहीं चैन लखावे ||

पति देव विनती करहुँ मान लेहु मम बात |
दुःख संकट सब टारी हैं वह त्रिभुवन के नाथ ||

स्वामी ने सब ठीक कहा,
        जो हाल द्रव्य के होते हैं,
है दिल में दर्द यही मेरे,
           जब भूखे बच्चे सोते हैं |
है हाल वही पति जागने पर,
       जो हाल काल में है गुजरा,
हर रोज नहीं देखा जाता,
       गम खाली से यह पेट भरा |
जाओ जल्दी देरी न करो,
          वह दीनानाथ कहाते हैं,
भक्तों के हितकारी बन,
        बिगरी को शीघ्र बनाते है |
तुम धन के हित सकुचाते हो,
         दर्शन हित ही तो जाओ,
बिन मांगे ही दे देंवेगे,
     द्रव्य लेकर नाथ शीघ्र आओ |
प्रसन्न चित्त से सेवा कर,
     नित गोविन्द के गुन गाऊँगी,
तुम कृष्ण चन्द्र के गुन गाना,
        सेवा कर प्रभु रिझऊँगी |