भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 6" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी }} {{KKCatKavita}} Category:लम्ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
<poem>
 
<poem>
  
आप विचार कियो अति सुन्दर मोर विचारन को उर धारो,
+
आप विचार कियो अति सुन्दर मोर विचारन को उर धारो,
 +
मैं कर जोर करूँ विनती पति कृष्ण सखा निज मीत तिहारो |
 +
जाय मिलो अरु हाल कहो अति कष्ट करे दुःख दैन्य हत्यारो,
 +
ये सब बात विचार पति  अब कृष्णपुरी  तुम  शीघ्र सिधारो |
 +
 
 +
मान करे मिलते ही मन-मोहन  दूर करें विपदा दुःख थारो,
 +
दौलत पाय भजो हरि को पति जीवन को फल नेक विचारो |
 +
बात कहूँ फिर नाथ यही  हरि दर्शन से  यह जन्म सुधारो,
 +
दूर न है कबहूं वह ग्राम  बसे  मन मोहन  नन्द दुलारों |
 +
 
 +
भक्त सुदामा ने कहा, सुनरी बावरी वाम|
 +
झूठा मंगू  द्रव्य क्या, निर्धन का धन राम ||
 +
 
 +
मानस को तन है तो, मन करके भजो ईश,
 +
                अकारण दयालु दाता, सदा शुभकारी है |
 +
श्रद्धा अरु भक्ति से, शक्ति कर अमोघ पैदा,
 +
                अनुभव को मार्ग सत्य, मिथ्या संसारी है | 
 +
पूर्व जन्म पुण्यहूँ से, मार्ग सुमार्ग मिले,
 +
                    जन्म-जन्मान्तर की बिगरी सुधारी है |
 +
कहता है सुदामा प्रभु ही प्रतिपाल करे,
 +
                  उनही को सत्य प्रिया गावे वेद चारि हैं |
 +
 
 +
जड़ अरु चेतन में प्रभु का प्रकाश प्रिये,
 +
                  मानव विचित्र खूब बुद्धि के बनाये हैं |
 +
केते हैं भक्त योगी योग में तल्लीन रहते,
 +
                केते ही अफंडी बन दुनियां में आये हैं |
 +
केते हैं शरीफ सज्जन जन सुशील शील,
 +
                केते ही मानव शुद्ध कृष्ण गुण गए हैं |
 +
कहता सुदामा प्रिये राम-कृष्ण भजे सार,
 +
                बात यह विचारि देख वेही सुख पाए हैं |
 
<poem>
 
<poem>

21:27, 24 जून 2016 के समय का अवतरण


आप विचार कियो अति सुन्दर मोर विचारन को उर धारो,
मैं कर जोर करूँ विनती पति कृष्ण सखा निज मीत तिहारो |
जाय मिलो अरु हाल कहो अति कष्ट करे दुःख दैन्य हत्यारो,
ये सब बात विचार पति अब कृष्णपुरी तुम शीघ्र सिधारो |

मान करे मिलते ही मन-मोहन दूर करें विपदा दुःख थारो,
दौलत पाय भजो हरि को पति जीवन को फल नेक विचारो |
बात कहूँ फिर नाथ यही हरि दर्शन से यह जन्म सुधारो,
दूर न है कबहूं वह ग्राम बसे मन मोहन नन्द दुलारों |

भक्त सुदामा ने कहा, सुनरी बावरी वाम|
झूठा मंगू द्रव्य क्या, निर्धन का धन राम ||

मानस को तन है तो, मन करके भजो ईश,
                 अकारण दयालु दाता, सदा शुभकारी है |
श्रद्धा अरु भक्ति से, शक्ति कर अमोघ पैदा,
                 अनुभव को मार्ग सत्य, मिथ्या संसारी है |
पूर्व जन्म पुण्यहूँ से, मार्ग सुमार्ग मिले,
                    जन्म-जन्मान्तर की बिगरी सुधारी है |
कहता है सुदामा प्रभु ही प्रतिपाल करे,
                  उनही को सत्य प्रिया गावे वेद चारि हैं |

जड़ अरु चेतन में प्रभु का प्रकाश प्रिये,
                   मानव विचित्र खूब बुद्धि के बनाये हैं |
केते हैं भक्त योगी योग में तल्लीन रहते,
                 केते ही अफंडी बन दुनियां में आये हैं |
केते हैं शरीफ सज्जन जन सुशील शील,
                 केते ही मानव शुद्ध कृष्ण गुण गए हैं |
कहता सुदामा प्रिये राम-कृष्ण भजे सार,
                बात यह विचारि देख वेही सुख पाए हैं |