भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केला / सुधा चौहान

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:16, 4 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा चौहान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरे-भरे छिलकों का केला,
इससे भरा हुआ है ठेला!
फलवाला चिल्लाता ले लो,
मीठा हलुआ-सा है देखो!
बीज न गुठली इसमें पाओ,
छिलका छीलो गप से खाओ!