भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई ऊँची अटारी पे बैठा रहा, हाय! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं! / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:34, 23 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंड…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कोई ऊंची अटारी पे बैठा रहा, हाय! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं!
झुक के आँचल में उसने समेटा हमें, ज्यों ही तूफ़ान ने सर उभारा नहीं

उनसे उम्मीद क्या, बाद मरने के वे,दो क़दम आके काँधा भी देंगे कभी
जो अभी डूबता देखकर भी हमें, एक तिनके का देते सहारा नहीं

वार दुनिया के हँस-हँस के झेला किया, हमने दुश्मन न समझा किसी को कभी
जिनको अपना समझते थे दिल में मगर, बेरुखी आज उनकी गवारा नहीं

हो न मंजिल का कोई पता भी तो क्या! छोड़कर कारवाँ बढ़ गया भी तो क्या!
राह वीरान, दिन ढल रहा भी तो क्या! चलनेवाला अभी दिल में हारा नहीं

तू खिला इस तरह जो रहेगा, गुलाब! प्यार भी उनकी आँखों में आ जायगा
तेरी खुशबू तो उन तक पहुँच ही गयी, रुक के जूड़ा भले ही सँवारा नहीं