भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कोई जा रहा है सवेरे-सवेरे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
  
 
सकुचता, सिहरता, सहमता, लजाता
 
सकुचता, सिहरता, सहमता, लजाता
खुद अपनी ही आँखों से आँखें चुराता  
+
ख़ुद अपनी ही आँखों से आँखें चुराता  
 
उतर चाँद ज्यों झील में झिलमिलाता  
 
उतर चाँद ज्यों झील में झिलमिलाता  
 
नज़र आ रहा है सवेरे-सवेरे
 
नज़र आ रहा है सवेरे-सवेरे
पंक्ति 21: पंक्ति 21:
 
नज़र अब भी सपनों में खोयी हुई है  
 
नज़र अब भी सपनों में खोयी हुई है  
 
हँसी ज्यों शहद में डुबोई हुई है  
 
हँसी ज्यों शहद में डुबोई हुई है  
कोई तान होठों पे सोयी हुई है  
+
कोई तान होँठों पे सोयी हुई है  
 
जिसे गा रहा है सवेरे-सवेरे  
 
जिसे गा रहा है सवेरे-सवेरे  
  
 
कोई जा रहा है सवेरे-सवेरे  
 
कोई जा रहा है सवेरे-सवेरे  
 
<poem>
 
<poem>

03:53, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


कोई जा रहा है सवेरे-सवेरे

सकुचता, सिहरता, सहमता, लजाता
ख़ुद अपनी ही आँखों से आँखें चुराता
उतर चाँद ज्यों झील में झिलमिलाता
नज़र आ रहा है सवेरे-सवेरे
 
ये आँखों की अनबूझ, अनमोल भाषा 
पलटकर ये फिर लौटने का दिलासा
ये बिंदी मिटी-सी, ये काजल पुँछा-सा
ग़ज़ब ढा रहा है सवेरे-सवेरे
 
नज़र अब भी सपनों में खोयी हुई है
हँसी ज्यों शहद में डुबोई हुई है
कोई तान होँठों पे सोयी हुई है
जिसे गा रहा है सवेरे-सवेरे

कोई जा रहा है सवेरे-सवेरे