भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कोई तो बादल सा बरसे / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |संग्रह=बाँस-वन और बाँ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो ("कोई तो बादल सा बरसे / गुलाब सिंह" सुरक्षित कर दिया (‎[edit=sysop] (बेमियादी) ‎[move=sysop] (बेमियादी)))
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
<poem>
 
<poem>
कोई तो बादल सा बरसे
+
कोई तो बादल-सा बरसे
 
धरती को शीतल कर जाए।
 
धरती को शीतल कर जाए।
  
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
  
 
शब्दों-से दो कोमल पत्ते-
 
शब्दों-से दो कोमल पत्ते-
निकलें, सृष्टि कथा कह पाये।
+
निकलें, सृष्टि कथा कह पाए।
  
 
जंगल है या
 
जंगल है या
पंक्ति 34: पंक्ति 34:
 
वत्सल बाँहें
 
वत्सल बाँहें
 
मुक्त हँसी
 
मुक्त हँसी
आत्मीय अपरिचय किसे याद है
+
आत्मीय अपरिचय किसे याद हैं
  
 
भूत-भविष्यत से हट कोई
 
भूत-भविष्यत से हट कोई
 
वर्तमान पल तक तो आए!
 
वर्तमान पल तक तो आए!
 
</poem>
 
</poem>

17:38, 7 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

कोई तो बादल-सा बरसे
धरती को शीतल कर जाए।

सुख से फूटे
दुख से फूटे
अंकुर कोई फूटे तो,
आँसू-मुस्कानों के क्रम से
अनउर्वरता
टूटे तो,

शब्दों-से दो कोमल पत्ते-
निकलें, सृष्टि कथा कह पाए।

जंगल है या
भीड़ सघन है
फिर भी सूना-सूनापन है
सोने-चाँदी के
पौधों में,
फूल खिलाने का उद्यम है

पर सुगन्ध मिट्टी में पलती
कोई तो मिट्टी तक जाए!

उगता सूरज
बिछी चाँदनी
खिले फूल अब किसे याद हैं,
वत्सल बाँहें
मुक्त हँसी
आत्मीय अपरिचय किसे याद हैं

भूत-भविष्यत से हट कोई
वर्तमान पल तक तो आए!