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कौण देश तैं आई सै, हे कौण देश तूँ जागी / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल

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कौण देश तैं आई सै, हे कौण देश तूँ जागी,
तनै आगै और चालणा सै, के ठीक-ठीकाणै आगी।। टेक ।।

रंज-फ़िक्र म्य माड़ी होगी, सूख -सूख कैं झड़गी,
भेद बताणा चाहिए सारा, कौणसी वेदन छिड़गी,
मरी बराबर होरी सै, के नाग विपद की लड़गी,
के घरक्यां तैं झगड़ा होग्या, बणकैं बात बिगड़गी,
के तेरै कर्मा का चक्र सै, तूँ फिरती भागी-भागी ।।

के हिमाचल की पार्वती, तनै शिवजी छोड़ डिगरग्या,
के इन्द्र की इन्द्राणी सै, तनै दिल तैं न्यारी करग्या,
के विष्णु की सुरेश्वरी सै, छोड़ दई मन भरग्या,
फिरै पुरंजनी तेरा पति पुरंजन, देख-देख तनै डरग्या,
छोड़ दिया घरबार तनै, के चोट कसूती लागी ।।

के नळ राजा छोड़ गया तूँ, भीमसेन की जाई,
के गौतम की नार अहिल्या, भरती फिरै तवाई,
के जनक दुलारी जगमाता सै, राम भूलग्ये ब्याही,
के सुग्रीव की तारा देवी, बाली नै घणी सताई,
के तेरे मात-पिता नै काढ़ी, के तेरे पति नै त्यागी ।।

कहै केशोराम बता के दुख होग्या, तेरी किस्मत बोदी म्य,
कुन्दनलाल तूँ हार गई, ना आई सै सोदी म्य,
बुरी करणीया आप पड़ैगा, खुद अपणी खोदी म्य,
नंदलाल कैसा सुथरा यो, बेटा ले री सै गोदी म्य,
साच बतादे पात्थरआळी की, क्यूंकर राही पागी ।।