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"कौन अब सुनेगा ये गीत!/ गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=हम तो गाकर मुक्त हुए / गुलाब खंडेलवाल
 
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[[Category:गीत]]
 
<poem>
 
  
कौन अब सुनेगा ये गीत!
 
एक-एक करके जा रहे हैं सभी मीत
 
 
वन में ज्यों लगी आग
 
डर-डर कर रहे भाग
 
विहगों के दल विकल, सभीत
 
 
 
काल जिसे लिखता है
 
पृष्ठ शून्य दिखता है
 
जीवन सपने-सा रहा बीत
 
 
 
क्षीण तड़ित-रेखा है
 
शेष कुल अदेखा है
 
आगे नीलाभ, मौन, शीत
 
 
कौन अब सुनेगा ये गीत!
 
एक-एक करके जा रहे हैं सभी मीत
 
<poem>
 

03:31, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण