भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कौन मारुति को धैर्य बँधाता! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
गये सती के चरणों में झुक
 
गये सती के चरणों में झुक
 
हृदय रो पड़ा ज्यों तट से रुक  
 
हृदय रो पड़ा ज्यों तट से रुक  
सिन्धु पछाड़ें खाता  
+
                        सिन्धु पछाड़ें खाता  
 
 
 
 
 
सुधि आयी अशोक कानन की
 
सुधि आयी अशोक कानन की
 
बोले --'भड़क रही लौ मन की
 
बोले --'भड़क रही लौ मन की
 
फूँकूँ फिर लंका रावण की  
 
फूँकूँ फिर लंका रावण की  
जी करता है, माता!
+
                        जी करता है, माता!
 
 
 
 
 
'कहाँ छिपे थे ये राक्षस तब!
 
'कहाँ छिपे थे ये राक्षस तब!
 
रजक डूबा दूँ सरजू में सब
 
रजक डूबा दूँ सरजू में सब
 
माँ! तेरा अपमान और अब
 
माँ! तेरा अपमान और अब
मुझसे सहा न जाता'
+
                        मुझसे सहा न जाता'
  
 
कौन मारुति को धैर्य बँधाता!
 
कौन मारुति को धैर्य बँधाता!
 
आये जब रथ निकट, भाव का ज्वार न था रुक पाता
 
आये जब रथ निकट, भाव का ज्वार न था रुक पाता
 
<poem>
 
<poem>

04:02, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


कौन मारुति को धैर्य बँधाता!
आये जब रथ निकट, भाव का ज्वार न था रुक पाता
 
देख मौन लक्ष्मण को नतमुख
गये सती के चरणों में झुक
हृदय रो पड़ा ज्यों तट से रुक
                        सिन्धु पछाड़ें खाता
 
सुधि आयी अशोक कानन की
बोले --'भड़क रही लौ मन की
फूँकूँ फिर लंका रावण की
                         जी करता है, माता!
 
'कहाँ छिपे थे ये राक्षस तब!
रजक डूबा दूँ सरजू में सब
माँ! तेरा अपमान और अब
                        मुझसे सहा न जाता'

कौन मारुति को धैर्य बँधाता!
आये जब रथ निकट, भाव का ज्वार न था रुक पाता