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क्यारी की निराई / पीटर पाउलसेन / फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ / अनिल जनविजय

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क्यारी पर झुकी हुई औरत को देखकर
भटक जाता है मेरा ध्यान
गुलाब के फूलों की तरफ़ से ।

जिस बग़ीचे में वह खड़ी है
लगने लगता है वह
अल्बर्टा काइरो* की कविता में व्यक्त बग़ीचा ।

क्यारियों में लगे फूल इतने डरे-डरे लगते हैं
मानो पुलिस आने वाली हो उनके पास ।

इस तरह के बग़ीचे ज़रा भी प्राकृतिक नहीं होते ।
उन्हें इस तरह लगाया जाता है
मानो कोई सैन्य-परेड हो रही हो ।

ऊपर की ओर उठा औरत का पिछवाड़ा
मेरे मन में छिपी वृत्तियों को उकसाता है
अब मेरे दिमाग में सरक रहा है
आदिम तृष्णाओं और वृत्तियों का साँप ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय