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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
मैं दुखी जब-जब हुआसंवेदना तुमने दिखाई,मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,रीति दोनो ने निभाई,किन्तु इस आभार का अबहो उठा है बोझ भारी;क्या करूं करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?<br>क्या करूंकरूँ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
मैं दुखी जब-जब हुआ<br>कौन है जो दूसरों कोसंवेदना तुमने दिखाई,<br>दु:ख अपना दे सकेगा?मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,<br>कौन है जो दूसरे सेरीति दोनो ने निभाई,<br>दु:ख उसका ले सकेगा?किन्तु इस आभार का अब<br>क्यों हमारे बीच धोखेहो उठा है बोझ भारी;<br>का रहे व्यापार जारी?क्या करूं करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?<br>क्या करूंकरूँ?<br>
 एक भी उच्छ्वास मेरा<br>हो सका किस दिन तुम्हारा?<br>उस नयन से बह सकी कब<br>इस नयन की अश्रु-धारा?<br>सत्य को मूंदे रहेगी<br>शब्द की कब तक पिटारी?<br>क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?<br>क्या करूं?<br>  कौन है जो दूसरों को<br>दु:ख अपना दे सकेगा?<br>कौन है जो दूसरे से<br>दु:ख उसका ले सकेगा?<br>क्यों हमारे बीच धोखे<br>का रहे व्यापार जारी?<br>क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?<br>क्या करूं?<br>  क्यों न हम लें मान, हम हैं<br>चल रहे ऐसी डगर पर,<br>हर पथिक जिस पर अकेला,<br>दुख नहीं बंटते बँटते परस्पर,<br>दूसरों की वेदना में<br>वेदना जो है दिखाता,<br>वेदना से मुक्ति का निज<br>हर्ष केवल वह छिपाता;<br>तुम दुखी हो तो सुखी मैं<br>विश्व का अभिशाप भारी!<br>क्या करूं करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?<br>क्या करूंकरूँ?</poem>
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