"क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
छो () |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | ||
+ | |संग्रह=आकुल अंतर / हरिवंशराय बच्चन | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? | ||
+ | क्या करूं? | ||
− | क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? | + | मैं दुखी जब-जब हुआ |
+ | संवेदना तुमने दिखाई, | ||
+ | मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा, | ||
+ | रीति दोनो ने निभाई, | ||
+ | किन्तु इस आभार का अब | ||
+ | हो उठा है बोझ भारी; | ||
+ | क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? | ||
क्या करूं? | क्या करूं? | ||
+ | एक भी उच्छ्वास मेरा | ||
+ | हो सका किस दिन तुम्हारा? | ||
+ | उस नयन से बह सकी कब | ||
+ | इस नयन की अश्रु-धारा? | ||
+ | सत्य को मूंदे रहेगी | ||
+ | शब्द की कब तक पिटारी? | ||
+ | क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? | ||
+ | क्या करूं? | ||
− | + | कौन है जो दूसरों को | |
− | + | दु:ख अपना दे सकेगा? | |
− | + | कौन है जो दूसरे से | |
− | + | दु:ख उसका ले सकेगा? | |
− | + | क्यों हमारे बीच धोखे | |
− | + | का रहे व्यापार जारी? | |
− | + | क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? | |
− | + | क्या करूं? | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | कौन है जो दूसरों को | + | |
− | दु:ख अपना दे सकेगा? | + | |
− | कौन है जो दूसरे से | + | |
− | दु:ख उसका ले सकेगा? | + | |
− | क्यों हमारे बीच धोखे | + | |
− | का रहे व्यापार जारी? | + | |
− | क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? | + | |
− | क्या करूं? | + | |
− | + | ||
− | क्यों न हम लें मान, हम हैं | + | क्यों न हम लें मान, हम हैं |
− | चल रहे ऐसी डगर पर, | + | चल रहे ऐसी डगर पर, |
− | हर पथिक जिस पर अकेला, | + | हर पथिक जिस पर अकेला, |
− | दुख नहीं बंटते परस्पर, | + | दुख नहीं बंटते परस्पर, |
− | दूसरों की वेदना में | + | दूसरों की वेदना में |
− | वेदना जो है दिखाता, | + | वेदना जो है दिखाता, |
− | वेदना से मुक्ति का निज | + | वेदना से मुक्ति का निज |
− | हर्ष केवल वह छिपाता; | + | हर्ष केवल वह छिपाता; |
− | तुम दुखी हो तो सुखी मैं | + | तुम दुखी हो तो सुखी मैं |
− | विश्व का अभिशाप भारी! | + | विश्व का अभिशाप भारी! |
− | क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? | + | क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? |
क्या करूं? | क्या करूं? | ||
+ | </poem> |
19:04, 2 अक्टूबर 2009 का अवतरण
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
मैं दुखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,
रीति दोनो ने निभाई,
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी;
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
कौन है जो दूसरों को
दु:ख अपना दे सकेगा?
कौन है जो दूसरे से
दु:ख उसका ले सकेगा?
क्यों हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापार जारी?
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
क्यों न हम लें मान, हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर,
हर पथिक जिस पर अकेला,
दुख नहीं बंटते परस्पर,
दूसरों की वेदना में
वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छिपाता;
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी!
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?