भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्या कहा, 'अब तो कोई ग़म न होगा'! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंड…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
दिल का मिलना क़दम-क़दम न होगा | दिल का मिलना क़दम-क़दम न होगा | ||
− | + | हँसके देखें गुलाब को यों आप | |
क्यों उसे प्यार का वहम न होगा! | क्यों उसे प्यार का वहम न होगा! | ||
<poem> | <poem> |
01:34, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
क्या कहा, 'अब तो कोई ग़म न होगा!'
हाँ जो पहले था एक भरम, न होगा
रंग यों तो किसीमें कम न होगा
फूल जो ढूँढते हैं हम, न होगा
तेरे आँचल का मिल गया है कफ़न
अब तो मरने का हमको ग़म न होगा
कुछ तो मिलता है हर नज़र में मगर
दिल का मिलना क़दम-क़दम न होगा
हँसके देखें गुलाब को यों आप
क्यों उसे प्यार का वहम न होगा!