भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क्या ख़ास क्या है आम ये मालूम है मुझे / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
देने पड़ेंगे दाम ये मालूम है मुझे  
 
देने पड़ेंगे दाम ये मालूम है मुझे  
  
रखते हैं कहकहों में छुपा कर उदासियाँ  
+
रखते हैं क़हक़हों में छुपा कर उदासियाँ  
 
ये मैकदे तमाम ये मालूम है मुझे  
 
ये मैकदे तमाम ये मालूम है मुझे  
  

14:59, 17 जून 2020 के समय का अवतरण

क्या ख़ास क्या है आम ये मालूम है मुझे
किसके हैं कितने दाम ये मालूम है मुझे

हम लड़ रहे हैं रात से लेकिन उजालों पर
होगा तुम्हारा नाम ये मालूम है मुझे

ख़ैरात में जो बाँट रहा हूँ उसी के कल
देने पड़ेंगे दाम ये मालूम है मुझे

रखते हैं क़हक़हों में छुपा कर उदासियाँ
ये मैकदे तमाम ये मालूम है मुझे

जब तक हरा-भरा हूँ उसी रोज़ तक हैं बस
सारे दुआ सलाम ये मालूम है मुझे