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क्या दिखायें हम? / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

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उम्र भर रोपा किये
केवल गुलाबों को
पर हवा में
सर सराहट
नागफनियों की
पंख नोचे छटपटाते से
परिन्दे कुछ
हैं डरी आँखें विवश
घायल हिरनियों की
ये हवायें हैं समय की
क्या डरे कोई
कौन सुनता है
किसे जाकर
सुनायें हम?
जो मिला
अपने अहम् के शिखर पर
चढ़कर
नफरतें ही तो मिली हैं
प्यार के बदले
तितलियों के पंख पर
धरते रहे खुशबू
मधु कलश ले
मधुप लंपट उड़ चले
हार कर तो बैठना
सीखा नहीं हमने
है चुनौती
मुश्किलों को
आज़मायें हम!

जब लिखा है नाम
पत्थर पर लिखा हमने
सर पटक कर आँधियाँ भी
क्या मिटायेंगी
उर्मियाँ तट का पकड़कर
हाथ बैठेंगी
देखना तब
गीत मेरे गुनगुनाएँगी
खूब तपकर पक चुकी हैं
ये बुझी साँसे
राख मुट्ठी भर बची है
क्या दिखायें हम?