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क्या मुकद्दर ने खेल खेला है / चेतन दुबे 'अनिल'
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क्या मुकद्दर ने खेल खेला है ।
तेरी यादों का एक मेला है ।
कोई शिकवा - गिला नहीं तुझसे-
जिन्दगी लग रही झमेला है।
मेरी तक़दीर ही निकम्मी है -
कौन किस्मत के संग खेला है ।
दूर तू , दूर मैं हूँ क्या करिए -
चाँदनी रात की ये बेला है ।
जिन्दगी क्या है कुछ नहीं मालूम-
लगती मिट्टी का एक ढेला है।