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क्या यूँ भी साझा होता है दुख/ राजेश चड्ढा

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मैंने देखा
एक भरे-पूरे घर में
वृद्ध महिला को
अकेले
टी वी पर
किसी बड़े आदमी की शव-यात्रा का
सीधा प्रसारण देखते
नहीं जानती
वो उस बड़े आदमी के बारे में बहुत कुछ
लेकिन
घर में मौजूद संवादहीनता की शिकार
वो वृद्ध महिला
रोती रही
अंतिम संस्कार के दृश्य तक
तलाश रही हो जैसे अपने सनातन संस्कार
जो कभी नहीं दिखाई देते
उसे अपने घर में
क्या यूँ भी अपने दुःख में रोया जाता है....?
क्या यूँ भी साझा होता है दुख...?