भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्या सब जानते थे तुम / उर्मिल सत्यभूषण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:14, 20 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
ज्योतिषी थे तुम
ज्योतिष तो पक्का था
जानते थे सब कुछ तुम
कल मेरे सामने
जंगल होगा जीवन का
रेत का समंदर होा
पहाड़ होंगे मुसीबतों के
हांेगे आंधी, तूफान
पथ न आसान होंगे
होंगे शूल और अंगार
मुझको अकेले ही
फलांगने होंगे।
प्रहारों से अपने
फौलाद बनाते थे
मुझ पर चलाते थे
अपने जहरीले तीर
जहर पिला कर तुम
चखाते रहे स्वाद ज़हर का
लैन्ज़ की मदद से
हाथों की लकीरों को
पढ़ डाला था तुमने
माथे के आईने पर
नियति के लेखों को भी
पढ़ लिया था तुमने
तुम क्या जानते थे
सब कुछ जानते थे?