भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या हम नहीं कर सकते कुछ भी / शैलेन्द्र चौहान
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:57, 1 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र चौहान }} कभी गवास्कर कभी पी.टी. ऊषा बनना चाह...)
कभी गवास्कर
कभी पी.टी. ऊषा
बनना चाहती
मेरी बिटिया
खेलों के प्रति उसका आकर्षण
निश्चित है घनात्मक
प्रसारित होता जब टी.वी. पर
खेलों का आँखों देखा हाल
दिन-भर बैठी रहती
टी.वी. के आगे
स्कूल की टीचरों से प्रभावित
बन जाती टीचर खेल-खेल में
ब्लैक बोर्ड पर लिखती प्रश्न
और पूछती उत्तर
नकल उतारती
खेलती बहन के साथ
डॉक्टर या इंजीनियर बनने की
इच्छा भी जगी है उसकी
कुछ बनने की इच्छा
निश्चित ही है अच्छी
इधर कुछ दिनों से
कर दिया है बन्द उसने
करना महत्वाकांक्षी बातें
पूछती है अब
क्यों मरते हैं इतने लोग
कौन होते हैं मारने वाले
कहाँ से आता है इतना
गोला-बारूद?
क्या करती है पुलिस, सेना
क्या करते हैं ये मंत्री
और हम नहीं कर सकते क्या
कुछ भी ?