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"क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

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क्योंकि याद तेरी आते ही तारे निकल आए
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इक तेज़ छुरी है जो उतरती ही चली जाए  
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कुछ एसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें  
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दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए
 
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07:48, 4 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र<ref>जुदाई के दुख में</ref> में नमनाक<ref>आर्द्र,नमी से भरी हुई</ref> हैं पलकें
क्यों याद तेरी आते ही तारे निकल आए

बरसात की इस रात में ऐ दोस्त तेरी याद
इक तेज़ छुरी है जो उतरती चली जाए

कुछ ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए

शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के<ref>धुरंधर</ref> लेकिन
रक्खा है अजब नाम, कि जो रास न आए

शब्दार्थ
<references/>