भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए
 
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए
  
शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के<ref>धुरंधर/ref>  लेकिन  
+
शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के<ref>धुरंधर</ref>  लेकिन  
 
रक्खा है अजब नाम, कि जो रास न आए
 
रक्खा है अजब नाम, कि जो रास न आए
 
</poem>
 
</poem>
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}

07:48, 4 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र<ref>जुदाई के दुख में</ref> में नमनाक<ref>आर्द्र,नमी से भरी हुई</ref> हैं पलकें
क्यों याद तेरी आते ही तारे निकल आए

बरसात की इस रात में ऐ दोस्त तेरी याद
इक तेज़ छुरी है जो उतरती चली जाए

कुछ ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए

शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के<ref>धुरंधर</ref> लेकिन
रक्खा है अजब नाम, कि जो रास न आए

शब्दार्थ
<references/>