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क्यों नहीं / ऋतु पल्लवी

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नीला आकाश ,सुनहरी धूप ,हरे खेत

पीले पत्ते ही क्यों उपमान बनते हैं !


कभी बेरंग रेगिस्तान में क्यों

गुलाबी फूलों की बात नहीं होती ?


रूप की रोशनी ,तारों की रिमझिम,

फूलों की शबनमी को ही क्यों सराहते हैं लोग!


कभी अनमनी अमावस की रात में क्यों

चाँद की चांदनी नहीं सजती ?


नेताओं के नारे ,पत्रकारों के व्यक्तव्य

कवि के भवितव्य ही क्यों सजते हैं अखबारों में!


कभी आम आदमी की संवेदना का सम्पादन

क्यों नहीं छपता इन प्रसारों में ?


मैं तुम्हें प्रेम भरी पाती ,संवेदनशील कविता,सन्देश,आवेश

या आक्रोश कुछ भी न भेजूं!


फिर भी मुखरित हो जाए मेरी हर बात

कभी क्यों नहीं होता ऐसा शब्दों पर,मौन का आघात..?