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क्यों न मैं पेड़ हो जाऊँ / रश्मि विभा त्रिपाठी

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1
कुछ ऐसा ही है
तुम्हारे प्यार और हमदर्दी में
जैसे
किसी गरीब को मिल जाए कम्बल
कड़ाके की सर्दी में।
2
हँसी का चटख रंग गाल पर
पोतके स्याही बवाल पर
तुमने सजा दिया
जीवन का कैनवास
लेकरके
इन्द्रधनुषी प्यार
तुम धन्य हो मेरे शिल्पकार!
3
अहसास की बारिश में
कभी जो
भीग जाओगे,
मुहब्बत
किसको कहते हैं
तुम यकीनन सीख जाओगे।
4
ज़िस्म के सादा वरक़ पे कभी
शिद्दत- ए- अहसास का
नक़्शा न दिखेगा,
मुहब्बत पढ़ने का गर अक़ीदा है
तो खोलिए रूह की मुक़द्दस किताब को।
5
सबसे छुपाकरके
पलकों के परदे में
रखती हूँ,
कहीं देख न ले
दुनिया तुमको
मैं हर पल
एहतियात बरतती हूँ।
6
उम्र बेकारी में गुजार दूँ
और अधेड़ हो जाऊँ,
किसी को छाँव दूँ घनी
क्यों न मैं पेड़ हो जाऊँ।
7
ले- देके
यही एक असबाब
मेरे पास है,
तुम हो कहीं भी,
पर तुमको मेरा अहसास है।
8
लफ्जों की पगडंडियों पर
मुझको न तलाशना,
जज्बात की गली में
पूछ लेना तुम मेरा ठिकाना।
9
ख़्वाब की मानिंद
मेरी निगाह में पलते हो,
सफर ये खूबसूरत है,
तुम संग- संग राह में चलते हो।
10
मेरी वस्ल- ए- आरज़ू को
तुमने जो घड़ियाँ उधार दीं,
मैंने गम- ए- फिराक़ में
उनके दम पे सदियाँ गुजार दीं।
11
जला है
वक़्त की धूप में
कितना ही मुसलसल,
उस पेड़ ने मुझ पर
मगर
साया किया है हर पल।
12
तुम्हारे मेरे बीच का प्यार
नई सड़क नहीं
जो उद्घाटन के दूसरे दिन ही उखड़ी है!
तुम्हारा मेरा प्यार
अकेले आदमी के हाथ से चिपका हुआ
एक एन्ड्रायड मोबाइल
जिसके भीतर के डाटा की स्पीड तगड़ी है!!
13
हर रोज हादसे,
आँसू हैं,
मातम है, इद्दत है,
मैं अब तक जो
साँस ले पा रही हूँ-
ये तुम्हारे प्यार की शिद्दत है।
14
यों पूरा हुआ
तुम्हें पाने का मेरा अरमान
एक परिंदे को
ज्यों मिल गया आसमान।
-0-