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"क्यों शहरों में आकर ऐसा लगता है / ओमप्रकाश यती" के अवतरणों में अंतर

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क्यों शहरों में आकर ऐसा लगता है
 
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जीवन का रस सूखा–सूखा लगता है।
 
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मानें तो सबके ही रिश्ते हैं सबसे
 
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वर्ना किसका कौन यहाँ क्या लगता है?
 
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जीवन का अंजाम नज़र में रख लें तो
 
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सब कुछ जैसे एक तमाशा लगता है।
 
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गाँव छोड़कर शहरों में जब आए तो
 
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हमको अपना नाम पुराना लगता है।
 
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बारुदी ताक़त है जिसके हाथों में
 
बारुदी ताक़त है जिसके हाथों में
 
उसको ये संसार ज़रा-सा लगता है।
 
उसको ये संसार ज़रा-सा लगता है।
 
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20:04, 22 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण


क्यों शहरों में आकर ऐसा लगता है
जीवन का रस सूखा–सूखा लगता है।

मानें तो सबके ही रिश्ते हैं सबसे
वर्ना किसका कौन यहाँ क्या लगता है?

जीवन का अंजाम नज़र में रख लें तो
सब कुछ जैसे एक तमाशा लगता है।

गाँव छोड़कर शहरों में जब आए तो
हमको अपना नाम पुराना लगता है।

बारुदी ताक़त है जिसके हाथों में
उसको ये संसार ज़रा-सा लगता है।