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क्यों सोचें अंजाम / प्रेमलता त्रिपाठी

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हृदय हार कर जीत लें, क्यों सोचें अंजाम।
अनुपम इसमें सुख छिपा, करते क्यों संग्राम।

पत्थर को सब पूजते, पत्थर मन इंसान,
प्रीति गली अति तंग है, लगा हुआ है जाम।

जगा सके शत सूर्य भी, मन में नहीं उजास,
तृषित हृदय यदि प्रेम का, दीप सजाती शाम।

राग द्वेष तन से मिटे, हितकारी वैराग,
नैन मूँद कर भी दिखे, प्रीतम वह छवि धाम।

मीरा को मिलता कहाँ, श्याम प्रीति का मान,
प्रेम हृदय की साधना, यदि देखे परिणाम।