भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्रांति के लाखों स्वरों में एक स्वर मेरा भी है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह=ग़ज़ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
छो |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
क्रांति के लाखों स्वरों में एक स्वर मेरा भी है। | क्रांति के लाखों स्वरों में एक स्वर मेरा भी है। | ||
− | खा रहे नेता जो | + | खा रहे नेता जो उस में आयकर मेरा भी है। |
भाग आया मैं वहाँ से क़त्ल होता देखकर, | भाग आया मैं वहाँ से क़त्ल होता देखकर, | ||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
साथ उसके रह रहा जो वो लवर मेरा भी है। | साथ उसके रह रहा जो वो लवर मेरा भी है। | ||
− | आप हैं ‘सज्जन’ तो हम भी | + | आप हैं ‘सज्जन’ तो हम भी ख़ुद को कहते हैं वही, |
आप जैसा हूबहू देखें कवर मेरा भी है। | आप जैसा हूबहू देखें कवर मेरा भी है। | ||
</poem> | </poem> |
12:59, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
क्रांति के लाखों स्वरों में एक स्वर मेरा भी है।
खा रहे नेता जो उस में आयकर मेरा भी है।
भाग आया मैं वहाँ से क़त्ल होता देखकर,
हाथ लेकिन ख़ून से क्यूँ तर-ब-तर मेरा भी है।
जो निठल्ला था वही अब काम आता है मेरे,
पुत्र एक परदेश में इंजीनियर मेरा भी है।
देखिए हर चीज साझा हो रही इस दौर में,
साथ उसके रह रहा जो वो लवर मेरा भी है।
आप हैं ‘सज्जन’ तो हम भी ख़ुद को कहते हैं वही,
आप जैसा हूबहू देखें कवर मेरा भी है।