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"क्षणिकाएं / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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पत्‍थर  है वो
 
पत्‍थर  है वो
 
उसी ने  सांसें
 
उसी ने  सांसें
रोक  रक्‍खी हैं।
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संभाल रक्‍खी हैं।
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पत्थरदिली से
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वाकिफ हूँ
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हाँ, मेरी शख्सियत भी
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दूब है।
  
 
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12:04, 8 जुलाई 2019 का अवतरण


तेरे बिना
यह जीवन
अमर हुआ जा रहा
सो लौट आना
देर-सबेर...।

तुम्‍हारी याद
बिल्‍कुल पागल है
बारहा सांकलें बजाती है।

हुक्‍मरां हैं हम
शर्म-ओ-हया की
औकात क्‍या -
जो पास आए।

हुक्‍मरां हुक्‍मरां से
लड़ते हैं
दो दुनिया तबाह होती है
शेष दो हुक्‍मरां ही बचते हैं।

हुक्‍मरां की
एक भौंह गीली है
कहीं कोई आशियां
जला होगा।

सीने पे रखा
पत्‍थर है वो
उसी ने सांसें
संभाल रक्‍खी हैं।

पत्थरदिली से
वाकिफ हूँ
हाँ, मेरी शख्सियत भी
दूब है।