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ख़ताए-इश्क़ की इस दिल को सज़ा दी जाए/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००२

ख़ताए-इश्क़<ref>प्यार करने की ग़लती</ref> की इस दिल को सज़ा दी जाए
मेरे साथ उसकी तस्वीर जला दी जाए

उन आँखों में नमी गर एक बूँद भी हो बाक़ी
वो इक बूँद उस गदेली से उठा ली जाए

तहज़ीबे-इश्क़ जो उसे सताये ताउम्र
उसे मुझसे थोड़ी बेवफ़ाई सिखा दी जाए

मैं कौन हूँ मैं क्या हूँ किससे हूँ मेरे ख़ुदा
बिगड़ी ‘नज़र’ की उसके हाथों बना दी जाए

ख़ुदा से हर दुआ में माँगा था उसको
काश ‘विनय’ वो हर दुआ ठुकरा दी जाए

शब्दार्थ
<references/>