भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ख़यालों में उनके समाये हैं हम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
जिन्हें देखकर था नशा चढ़ गया | जिन्हें देखकर था नशा चढ़ गया | ||
− | वही कह रहे, पीके आये हैं हम | + | वही कह रहे, 'पीके आये हैं हम' |
मसलती है पाँवों से दुनिया गुलाब | मसलती है पाँवों से दुनिया गुलाब | ||
मगर अब हवाओं में छाये हैं हम | मगर अब हवाओं में छाये हैं हम | ||
<poem> | <poem> |
01:51, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
ख़यालों में उनके समाये हैं हम
भले ही नज़र में पराये हैं हम
कभी इसको मुँह तक भरें तो सही
ये प्याला बहुत बार लाये हैं हम
हुआ क्या जो सब उठके जाने लगे
अभी बात भी कह न पाए हैं हम!
जिन्हें देखकर था नशा चढ़ गया
वही कह रहे, 'पीके आये हैं हम'
मसलती है पाँवों से दुनिया गुलाब
मगर अब हवाओं में छाये हैं हम