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[[Category:ग़ज़ल]]
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ख़मोश हो क्यों दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते
वहशत का सबब रूज़न-ए-ज़िन्दाँ तो नहीं है
महर-ओ-माह-ओ-अन्जुम को बुझा क्यूँ नहीं देते
ख़मोश हो क्यों दादइक ये भी तो अन्दाज़-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते <br>इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ ऐ चारागरो दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते <br><br>
वहशत का सबब रूज़न-ए-ज़िन्दाँ मुंसिफ़ हो अगर तुम तो नहीं है <br>कब इन्साफ़ करोगे महर-ओ-माह-ओ-अन्जुम को बुझा मुजरिम है अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते <br><br>
इक ये भी रहज़न हो तो अन्दाज़हाज़िर है मता-ए-इलाजदिल-ए-ग़म-ए-जाँ है <br>भी ऐ चारागरो दर्द बढ़ा रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते <br><br>
मुंसिफ़ हो अगर तुम तो कब इन्साफ़ करोगे <br>मुजरिम है अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते <br><br> रहज़न हो तो हाज़िर है मता-ए-दिल-ओ-जाँ भी <br>रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते <br><br> क्या बीत गई अब के "फ़राज़" अहल-ए-चमन पर <br>यारान-ए-क़फ़स मुझको सदा क्यूँ नहीं देते <br><br/poem>
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