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ख़ुदा के बन्दे तो हैं हज़ारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे / इक़बाल
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गुज़र गया अब वो दौर साक़ी, कि छुप के पीते थे पीने वाले
बनेगा सारा जहाँ मयख़ाना हर कोई बादह्ख़ार<ref>शराब पीने वाला </ref> होगा
तुम्हारी तहज़ीब अपने ख़्जर से आप ही ख़ुद्कुशी करेगी
जो शाख़े-नाज़ुक़<ref>नाज़ुक़ टहनी </ref> पे आशियाना बनेगा, नापाएदार<ref>कमज़ोर </ref> होगा
ख़ुदा के बन्दे तो हैं हज़ारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे
मैं उसका बन्दा बनूँगा जिसको ख़ुदा के बन्दों से प्यार होगा
शब्दार्थ
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