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|रचनाकार=अहमद नदीम काज़मीक़ासमी
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[[Category:ग़ज़ल]]
 <poem>
ख़ुदा नहीं, न सही, ना-ख़ुदा नहीं, न सही
 
तेरे बगै़र कोई आसरा नहीं, न सही
 
तेरी तलब का तक़ाज़ा है ज़िन्दगी मेरी
 
तेरे मुक़ाम का कोई पता नहीं, न सही
 
तुझे सुनाई तो दी, ये गुरूर क्या कम है
 
अगर क़बूल मेरी इल्तिजा नहीं, न सही
 
तेरी निगाह में हूँ, तेरी बारगाह में हूँ
 
अगर मुझे कोई पहचानता नहीं, न सही
 
नहीं हैं सर्द अभी हौसले उड़ानों के
 
वो मेरी जात से भी मावरा नहीं, न सही
 
ना-ख़ुदा= नाविक अथवा कर्णधार; तलब का तक़ाज़ा=चाह की ज़रूरत; इल्तिजा=प्रार्थना; बारगाह=कचहरी; मावरा=परे
</poem>
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