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ख़ुशबुओं का हिसाब रखता है / दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'

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ख़ुशबुओं का हिसाब रखता है ,
वो जो नकली गुलाब रखता है .
उसका अहसास मर गया शायद ,
इसलिए वो किताब रखता है .
पूछता है जवाब औरों सॆ ,
पहले जो खुद जवाब रखता है .
साथ देता है सच का सिर्फ़ वही ,
दिल में जो इन्क़लाब रखता है .
‘शम्स’ रखता है आग सीने में ,
और आंखों में आब रखता है .