भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़ुश्बू भरे वो बाग़ गुलाबों के खो गए.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (ख़ुश्बू भरे बदन वो, गुलाबों के खो गए / श्रद्धा जैन का नाम बदलकर [[ख़ुश्बू भरे वो बाग़ गुलाबों के ख...)
छो (Shrddha moved page ख़ुश्बू भरे वो बाग़ गुलाबों के खो गए / श्रद्धा जैन to [[ख़ुश्बू भरे वो बाग़ गुलाबों के खो गए....)
(कोई अंतर नहीं)

08:57, 9 जुलाई 2013 का अवतरण

जितने महल बनाए थे ख़्वाबों के, खो गए
ख़ुश्बू भरे वो बाग़ गुलाबों के खो गए

हर बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गई
क़िस्से वो इंक़लाबी, किताबों के खो गए

तारीख़ मुफ़लिसी ने लिखी है कुछ इस तरह
मिलते नहीं निशान नवाबों के, खो गए

उलझन में घिर गया है, हर इक शख़्स शहर का
अब सिलसिले भी शोख़ जवाबों के खो गए

बच्चे जो खिलखिला के हँसे तो मुझे लगा
सुलगे हुए जो दिन थे अज़ाबों के, खो गए