भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खांसी / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(' == खांसी == <poem>अनेच्छिक क्रिया है एक और दिलाती है याद...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(खांसी)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
और दिलाती है याद
 
और दिलाती है याद
 
हमारा साम्राज्य चाहे जितना बड्ा हो  
 
हमारा साम्राज्य चाहे जितना बड्ा हो  
शरीर उससे बाहर ही है </poem>
+
शरीर उससे बाहर ही है  
  
 
इसकी अप्रिय कर्कश ध्वनि
 
इसकी अप्रिय कर्कश ध्वनि
प्रियजनों को भी करती है आशंकित  
+
प्रियजनों को भी करती है आशंकित
यह घोषणा है
+
यह घोषणा है  
हमारे नियंृण के बाहर  
+
शरीर के हमारे नियंृण से बाहर  
शरीर के अपनी तरह से  
+
अपनी तरह से  
स्वतंृ और परतंृ दोनों होने की  
+
परतंृ और स्वतंृ दोनो होने की  
  
खांसी को होना हमेशा उदास कर देता है  
+
खांसी का होना  
अगर सुर सको तो  
+
हमेशा उदास कर देता है  
खांसी सबसे बडंा धार्मिक प्रवचन है ं
+
अगर सुन सको तो  
=
+
यह सबसे बड्ा धार्मिक प्रवचन है ं

14:10, 29 अगस्त 2013 के समय का अवतरण


खांसी

अनेच्छिक क्रिया है एक
और दिलाती है याद
हमारा साम्राज्य चाहे जितना बड्ा हो
शरीर उससे बाहर ही है

इसकी अप्रिय कर्कश ध्वनि
प्रियजनों को भी करती है आशंकित
यह घोषणा है
शरीर के हमारे नियंृण से बाहर
अपनी तरह से
परतंृ और स्वतंृ दोनो होने की

खांसी का होना
हमेशा उदास कर देता है
अगर सुन सको तो
यह सबसे बड्ा धार्मिक प्रवचन है ं