भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खुली कपास को शोलों के पास मत रखना / ज्ञान प्रकाश विवेक

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:58, 30 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=आंखों में आसमान / ज्ञ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खुली कपास को शोलों के पास मत रखना
कोई बचाएगा तुमको यह आस मत रखना

ये कह के टूट गया आसमान से तारा
कि मेरे बाद तुम ख़ुद को उदास मत रखना

लगे जो प्यास तो आँखों के अश्क पी लेना
ये रेज़गार है, जल की तलाश मत रखना

यहाँ तो मौत करेगी हमेशा जासूसी
ये हादसों का शहर है,निवास मत रखना

अगर है डर तो अँगारे समेट लो अपने
हवा को बाँधने का इल्त्मास मत रखना

छिलेगा हाथ तुम्हारा ज़रा-सी ग़फ़लत पर
कि घर में काँच का टूटा गिलास मत रखना.