भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खूब है प्यार का यह दस्तूर / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ख़ूब है प्यार का यह दस्तूर
पास भी हैं हम दूर ही दूर

परदा नहीं बेबात है यह
कोई तो है परदे में ज़रूर

आप लगा लें जो मुँह पे नक़ाब
क्या है भला दर्पन का कसूर

और हों पीने को बेचैन
हम हैं नशे में प्यार के चूर

उड़ने लगा है गुलाब का रंग
एक निगाह तो कर लें, हुज़ूर!