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"खेलने लगे खिलौने / सुरेश यादव" के अवतरणों में अंतर

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भरी बरसात में
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खिलौने रचे थे - हमने
बेच डाले हैं अपने छोटे-छोटे घर
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इस लिए
खरीद लाये हैं एक बड़ा-सा आकाश
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कि इनसे खेलेंगे
इस बस्ती के लोग
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खेलने लगे अपनी मरजी से
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लेकिन ये खिलौने
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करने लगे मनमानी
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बच्चों को खाने लगे बे खौफ
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ये खिलौने
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बेकाबू हुए हैं जब से ये खिलौने
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एक-एक कर हम भूल गए हैं
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सारे खेल बदहवासी में
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खिलौने अब हमें डराने लगे हैं.
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21:41, 19 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


खिलौने रचे थे - हमने
इस लिए
कि इनसे खेलेंगे
खेलने लगे अपनी मरजी से
लेकिन ये खिलौने
करने लगे मनमानी
बच्चों को खाने लगे बे खौफ
ये खिलौने

बेकाबू हुए हैं जब से ये खिलौने
एक-एक कर हम भूल गए हैं
सारे खेल बदहवासी में
खिलौने अब हमें डराने लगे हैं.