भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खो गयी है सुई / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 13 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुंबजों का शहर
सीढ़ियों का शहर
अक्स हैं धूप के -आयने जादुई
 
राह सीधी नहीं
हर सडक मुड़ रही
बंद दीवार से
जानकर जुड़ रही
 
अजनबी भीड़ जलसे में शामिल हुई
 
चींटियों की तरह
लोग चलते रहे
पार मीनार के
रोज़ ढलते रहे
 
 
पीठ पर हैं गदेले
रुई से भरे
हर गली में मिले
हाँफते आसरे
खोजते ही रहे रोशनी अनछुई
 
फूस के ढेर में खो गयी है सुई