भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खो बैठे / हरेराम बाजपेयी 'आश'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरेराम बाजपेयी 'आश' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
कुछ पाने की अभिलाषा में,  
 
कुछ पाने की अभिलाषा में,  
 
जो था वह भी खों बैठे,  
 
जो था वह भी खों बैठे,  
पलकों पी9चे दर्द छुपा था,  
+
पलकों पीछे दर्द छुपा था,  
 
हवा मिली तो रो बैठे।  
 
हवा मिली तो रो बैठे।  
  

19:04, 13 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

कुछ पाने की अभिलाषा में,
जो था वह भी खों बैठे,
पलकों पीछे दर्द छुपा था,
हवा मिली तो रो बैठे।

वर्षों से कर रहा तपस्या,
तन ने किसी को छुआ नहीं,
मन तो मर-मर जिया बेचारा,
किसी का अब तक हुआ नहीं,
जिसे भी अपना लगे बनाने,
वो और किसी के हो बैठे। पलकों पीछे...

अभिलाषा के आसमान पर,
घाना अँधेरा छाया है,
नजर नहीं आता है रास्ता,
पागल मन भरमाया है,
एक किरन की आश लगाई,
तो सारी पूनम खो बैठे।

कुछ पाने की अभिलाषा में,
जो था वह भी खो बैठे,
पलकों पीछे दर्द छुपा था,
हवा मिली तो रो बैठे।