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"गंगा जमुना / इन्साफ की डगर पर" के अवतरणों में अंतर

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<poem>इन्साफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
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ये देश हैं तुम्हारा, नेता तुम ही हो कल के
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इन्साफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
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ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्ही हो कल के
  
दुनियाँ के रंज सहना और कुछ ना मुँह से कहना
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दुनिया के रंज सहना और, कुछ ना मुँह से कहना
 
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
 
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
 
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के
 
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के
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इन्साफ की डगर पे...
  
अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय
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अपने हों या पराए, सब के लिए हो न्याय
देखो कदम तुम्हारा, हरगिज ना डगमगाए
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देखो कदम तुम्हारा, हरगिज़ ना डगमगाए
रस्ते बडे कठिन हैं, चलना संभल संभल के
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रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभल-संभल के
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इन्साफ की डगर पे...
  
इन्सानियत के सर पे, इज्जत का ताज रखना
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इन्सानियत के सर पे, इज़्ज़त का ताज रखना
 
तन मन की भेंट देकर, भारत की लाज रखना
 
तन मन की भेंट देकर, भारत की लाज रखना
 
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के
 
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के
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इन्साफ की डगर पे...
 
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20:14, 19 मार्च 2010 के समय का अवतरण

रचनाकार: शकील बदायूनी                 

इन्साफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्ही हो कल के

दुनिया के रंज सहना और, कुछ ना मुँह से कहना
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के
इन्साफ की डगर पे...

अपने हों या पराए, सब के लिए हो न्याय
देखो कदम तुम्हारा, हरगिज़ ना डगमगाए
रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभल-संभल के
इन्साफ की डगर पे...

इन्सानियत के सर पे, इज़्ज़त का ताज रखना
तन मन की भेंट देकर, भारत की लाज रखना
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के
इन्साफ की डगर पे...