"गम रहा जब तक कि दम में दम रहा / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' | |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
− | + | <poem> | |
+ | ग़म रहा जब तक कि दम में दम रहा | ||
+ | दिल के जाने का निहायत ग़म रहा | ||
− | दिल | + | दिल न पहुँचा गोशा-ए-दामन तलक |
+ | क़तरा-ए-ख़ूँ था मिज़्हा<ref>भवें | ||
+ | </ref> पे जम रहा | ||
+ | जामा-ए-अहराम-ए-जाहिद<ref>पवित्र चोले</ref> पर न जा | ||
+ | था हरम<ref>मस्जिद</ref> में लेक ना-महरम<ref>अपरिचित / अँधेरे में</ref> रहा | ||
+ | |||
+ | ज़ुल्फ़ खोले तू जो टुक<ref>क्षण भर के लिए</ref> आया नज़र | ||
+ | उम्र भर याँ काम-ए-दिल बरहम<ref>दिल परेशान रहा</ref> रहा | ||
+ | |||
+ | उसके लब से तल्ख़<ref>चुभने वाली बातें</ref> हम सुनते रहे | ||
+ | अपने हक़ में<ref>हमारे लिए</ref> आब-ए-हैवाँ<ref>अमृत-कुण्ड</ref> सम<ref>विष</ref> रहा | ||
हुस्न था तेरा बहुत आलम फरेब | हुस्न था तेरा बहुत आलम फरेब | ||
− | |||
खत के आने पर भी इक आलम रहा | खत के आने पर भी इक आलम रहा | ||
− | |||
मेरे रोने की हकीकत जिस में थी | मेरे रोने की हकीकत जिस में थी | ||
+ | एक मुद्दत तक वो क़ाग़ज़ नम रहा | ||
− | + | सुबह पीरी शाम होने आई<ref>जीवन-संध्या की रात होने को है</ref> `मीर' | |
− | + | तू न जीता, याँ बहुत दिन कम रहा | |
− | + | </poem> | |
− | + | {{KKMeaning}} | |
− | + | ||
− | + |
19:24, 21 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
ग़म रहा जब तक कि दम में दम रहा
दिल के जाने का निहायत ग़म रहा
दिल न पहुँचा गोशा-ए-दामन तलक
क़तरा-ए-ख़ूँ था मिज़्हा<ref>भवें
</ref> पे जम रहा
जामा-ए-अहराम-ए-जाहिद<ref>पवित्र चोले</ref> पर न जा
था हरम<ref>मस्जिद</ref> में लेक ना-महरम<ref>अपरिचित / अँधेरे में</ref> रहा
ज़ुल्फ़ खोले तू जो टुक<ref>क्षण भर के लिए</ref> आया नज़र
उम्र भर याँ काम-ए-दिल बरहम<ref>दिल परेशान रहा</ref> रहा
उसके लब से तल्ख़<ref>चुभने वाली बातें</ref> हम सुनते रहे
अपने हक़ में<ref>हमारे लिए</ref> आब-ए-हैवाँ<ref>अमृत-कुण्ड</ref> सम<ref>विष</ref> रहा
हुस्न था तेरा बहुत आलम फरेब
खत के आने पर भी इक आलम रहा
मेरे रोने की हकीकत जिस में थी
एक मुद्दत तक वो क़ाग़ज़ नम रहा
सुबह पीरी शाम होने आई<ref>जीवन-संध्या की रात होने को है</ref> `मीर'
तू न जीता, याँ बहुत दिन कम रहा