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"गम ले के चले / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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तन्हाई से घबरा के निकले थे सुकूँ पाने
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गम ले के चले आए ख़ुशियों के घराने से
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कृष्णा ये कहे ठहरो ! बाज़ आओ सताने से
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सीने में समन्दर के एक आग भी होती है
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हारेंगे न बैठेंगे ,तुम लाख जतन कर लो 
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सीखे हैं सबक़ हमने उस्ताद ज़माने से !
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04:10, 6 जुलाई 2018 के समय का अवतरण


रूठे हैं जो क़िस्मत के तारों के बहाने से
वो मान भी जाएँगे थोड़ा सा मनाने से

तन्हाई से घबरा के निकले थे सुकूँ पाने
गम ले के चले आए ख़ुशियों के घराने से

सीता तो हुई रुसवा ,मीरा को गरल , अब भी
कृष्णा ये कहे ठहरो ! बाज़ आओ सताने से

सीने में समन्दर के एक आग भी होती है
भड़के तो ,कहाँ साथी ! बुझती है बुझाने से

हारेंगे न बैठेंगे ,तुम लाख जतन कर लो
सीखे हैं सबक़ हमने उस्ताद ज़माने से !