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गरानी-ए-शबे-हिज़्रां दुचंद क्या करते / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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गरानी-ए-शबे-हिज़्रां दुचंद क्या करते
इलाजे-दर्द तेरे दर्दमन्द क्या करते
वहीं लगी है जो नाज़ुक मुक़ाम थे दिल के
ये फ़र्क़ दस्ते-अदू के गज़ंद क्या करते
जगह-जगह पे थे नासेह तो कू-ब-कू दिलबर
इन्हें पसंद, उन्हें नापसंद क्या करते
हमीं ने रोक लिया पंजा-ए-जुनूं को वरना
हमें असीर ये कोताहकमन्द क्या करते
जिन्हें ख़बर थी कि शर्ते-नवागरी क्या है
वो ख़ुशनवा गिला-ए-क़ैदो-बंद क्या करते
गुलू-ए-इश्क़ को दारो-रसन पहुंच न सके
तो लौट आये तेरे सरबलंद, क्या करते