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"गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 5 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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11:02, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

यद्यपि सोनू, परस ला डांटत, मगर परस ला परत नइ घाव
लगत फकीरा ला बरछा अस, अंदर ह्मदय करत हे हाय।
काबर रुकय फकीरा-छोड़त सोनू के दरवाजा।
एक घरी नइ रुकना चहिये-जब अपजस अंदाजा।
मगर स्वार्थ हा पूर्ण होय या भविष्य मं कुछ आशा।
तब अपमान ला सहना चहिये-सुनना चहिये गारी।
रुकिस फकीरा ढीठ बने तब, अंकालू हा उंहचे अैस
ओहर सोनसाय ला बोलिस- “तोर पास मंय हा ऋण लेंव।
ओकर मूर ब्याज कतका अस, कहि हिसाब ला एकदम साफ
मोर कष्ट मं तंय चलाय हस, तब पटाय बर मोरो फर्ज।
जउन जमीन रहन राखे हंव, वापिस चहत पटा सब नोट
सकले हंव मुश्किल मं रुपिया, कष्ट झेल मर दुख सहि भूख।”
सोनू अंतर कंतर जोड़िस, कुटिल हंसी हंस करत हिसाब-
“जतका रकम धर के लाने हस, कोन्टा तक बर पुर नइ पात।
तोर भूमि तो पहिलिच बुड़गे, भइगे रख-भग जतका लाय
बचत कर्ज ला छोड़ देत हंव, तोर बुती अब जुड़ नइ पाय।”
अपन जमीन उबारे खातिर, रुपिया धर अंकालू आय
लेकिन उपक बुड़ा मं बुड़गे, ओकर ह्मदय करत हे हाय।
अंकालू हा तुरते गिन दिस, बसनी के रुपिया ला हेर
सोनसाय के नाम खेत लिख, ओतिर ला तज दीस अबेर।
चलिस फकीरा ओकर पाछू, अंकालू केंघरिस दुख साथ-
“अपन जमीन छोड़ाय आय मंय, मगर जमीन पूर्व बुड़ गीस।
मोर पास मं रिहिस हे रुपिया, उहू ला हड़पिस सोनसहाय
मोर दूध अउ दुहना फूटिस, जमों डहर ले लगगे हानि।”
कथय फकीरा- “तंय ठंउका हस, वास्तव आज होय बर्बाद
मगर काम ला नेक करे हस-अपन दिमाग रखे हस शांत।
दुखड़ा रोय अदालत दउड़त, खाहंय मांस वकील-दलाल
पूरा अस धन समय बोहाहय, हरिया भूमि बचत ते नाश।”
अंकालू के क्रोध भड़क गे- “बिन कारण जावत हे जान
तंय आगी मं घिव डारत हस, ताकि होंव मंय सत्यानाश।
चहत हवस-मंय रहंव कलेचुप, सोनवा के झन होय विरोध
पर अन्याय के पक्ष लेत हस, कार देत हस गलत सलाह?”
कथय फकीरा -”मोर तर्क सुन-हम जनता मन हन असमर्थ
सोनसाय ला गारी देवन, या छीनन हम ओकर भूमि।
पर कल्पना मं सार्थक एहर, पर प्रत्यक्ष असम्भव बात
सोनसाय हे पुरे गोसंइया, ओकर कोन हा करे बिगाड़!
सोनू ले तंय उबर आय हस, वास्तव होय नेक अस काम
खुद ला लाय सुरक्षित हस तंय, एहर आय बड़े उपलब्धि।”
फिक्र हटा अंकालू कहिथय -”तोर बात जस करुहा लीम
यद्यपि छेद करिस कांटा बन, पर पथ ला देखाय तंय ठीक।”
एमन अपन राह ला पकड़िन, सोनू हा मचात हे लूट
पर, पर ला घालत हे तेला, जेवत उम्र तेन नइ याद।
सोनसाय के बुद्धि हे चंचल, चिंतन करत रथय दिन रात-
अपन डहर आकर्षित होये, चलंव कते शतरंज के चाल?
सब ग्रामीण ला बला के बोलिस -”मंय हा जोंगे हंव शुभ काम
अपन गांव सुन्तापुर मं मंय, चहत बलाय सात विद्वान।
पर कठिनाई आत इहिच बस-परत खूब अक खर्च के मार
बोझ उठाय तुमन यदि राजू, तुम्हर साथ मंय तक तैयार।”
ग्रामीण झड़ी हर्ष कर बोलिस -”कहत तेन अति उत्तम गोठ
तोर तोलगी सदा धरे हन, तब अब घलो होय नइ घात।
जतका व्यय हमला कबूल-पर, भेज निमंत्रण-ज्ञानिक लान
गूढ़ गोठअमरे उत्साहित, सरहा तन के हो कल्याण।”
किहिस लतेल -”आन हम मेचका, कहूं आन ना कहुं तन जान
होय ज्ञान विज्ञान बात नइ, हम रहिथन सत्संग ले दूर।
तंय विद्वान बला ले निश्चय, हम स्वागत बर हन तैयार
मात्र तोर पर बोझ आय नइ, सब पर परत खर्च के भार।”
एेंच पैंच ले दूर गंवइहा, समझिन नइ सोनू के चाल
जइसे सिधवी मछरी जाथय-जान गंवाय जउन तन जाल।
सब ग्रामीण ला लहुटा सोनू, भोजन कर-कुछ लीस अराम
एकर बाद खेत बल जावत, किंजरे असन भरत डग लाम।
कुछ ओहिले अउ गिस तब मिलगे, सुद्धू बुता करत खुद खेत
सोनू हा एल्हत ओतिर थम -”कार कमावत बिधुन बिचेत!
परे डरे बेर्रा लइका बर, फोकट बोहा डरत श्रम बूंद
तोर लहू नइ आय गरीबा, तभो सुतत नइ आंखी मूंद?
छोड़ गरीबा के सेवा ला, देख अपन भर स्वार्थ अराम
ओंड़ा आत ले जेवन ला कर, नाक बजा के नींद ला भांज।”
सुद्धू चक ले बात ला काटिस -”यदपि गरीबा मम नइ पुत्र
ओकर पर सदभाव रखत हंव, उहू आय मानव के वंश।
पर के तन मं लहू हा दउड़त, चलत गरीबा के तन खून
लेकिन तंय हा भेद करत हस, क्षुद्र विचार करिच दिस दंग।