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गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 15 / नूतन प्रसाद शर्मा

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मींधू तिर मं मिठई हे थोरिक, ओला खाय छबलू ला दीस
छबलू मार गफेला खावत, पर ला कुटका तक नइ दीस।
पिनकू हा मींधू ला बोलिस -”छबलू ला पटाय हस घूंस
शुभ मुहूर्त के कारण मिलिहय, तोला अवस शासकीय काम”।
सब झन हंसिन खलखला तंहने पिनकू नापिस रस्ता।
आगू तन के दृष्य देख के रहिगे हक्का बक्का।
लगे चुनू के हाथ मं बेली, दू आरक्षक ओकर साथ
पिनकू पूछिस -”दंग होत हंव, तोर अभी के हालत देख।
ककरो ऊपर दुख आथय तब, करथस मदद हड़बड़ा दौड़
कभू गलत रद्दा नइ रेंगस, देत नियम कानून ला साथ।
मगर आज का जुरुम करे हस, लगे हवय का धारा ठोस
आखिर काय बात ए वाजिब, अपन समझ के फुरिया साफ?”
कलपिस चुनू – “नेक मनखे हा, अपन ला बोलत निश्छल नेक
ओकर पर यकीन नइ होवय, दुश्चरित्र के लगथय दाग।
तइसे निरपराध हंव मंय हा, पर प्रमाण बर मुश्किल होत
मगर तोर ले अतका मांगत – मोर व्यथा पर कर विश्वास।
खोरबहरा के हत्या होगिस, दूसर व्यक्ति करिस अपराध
पर अधिनियम हा मोला धांधत, मोर मुड़ी पर डारत दोष।
“तीन सौ दो’ धारा हा पकड़त, तब हथकड़ी लगे हे हाथ
मोर खिलाफ दर्ज हे प्रकरण, न्यायालय मं मोर बलाव।
मंय अब तक विश्वास रखे हंव, जब वास्तव मं मंय निर्दाेष
मोला दण्ड मिलन नइ पावय, छेल्ला घुमिहंव इज्जत साथ”।
पिनकू बोलिस -”निरदोसी हस, यदि तंय दण्ड मुक्त हो जात
तंय हा दूध भात ला खाबे, हमर हृदय के खिलही फूल।
पर तंय धोखा मं झन रहिबे, सावधान रहिबे हर टेम
अपन ला सुरक्षित राखे बर, पहिलिच ले प्रबंध कर लेव।”
तभे अै न सुखमा अउ नीयत, ओकर साथ एक ठन भैंस
सुखमा पूछिस -”पहिचानत हव – एहर आय सुंदरिया भैंस?”
चुनू अपन विपदा ला भूलिस, कहिथय – “मंय हा जानत खूब
एहर दुर्घटना मं घायल, अब तब छुटतिस एकर प्रान।
बपरी के उपचार करे बर, तोर पास हम धर के गेन
अब भैंसी के तबियत उत्तम, घोसघोस ले मोटाय हे देह।”
सुखमा बोलिस -”तुम्हरे कारन, बपरी हा जीयत हे आज
बिगर पुछन्ता के यदि होतिस, खुरच खुरच के देतिस जान।”
पिनकू हा सुखमा ला बोलिस -”तंय हा करे हमर तारीफ
ओकर ले हम गदगद होवत, मगर चुनू के दुर्गति देख –
मरत रथय के जीव बचाथय, अउ असहाय के टेकनी आय
खुद हा निरपराध हे तब ले, फंसगे हत्या के अपराध।”
सुखमा बोलिस – “दंग होत हंव – वाकई होय गलत अनियाव
जे मनसे ईनाम ला पातिस, ओला कार मिलत हे दण्ड!
पर मोला विश्वास अभी तक – चुनू करे हे हित के काम
ओकर फल मं अच्छा मिलिहय, सब प्रकरण हो जही समाप्त।”
सब झन अपन राह पर रेंगिन, पिनकू हा सुन्तापुर गांव
ओला जहां सनम हा मिलथय, पूछत हवय गांव के हाल –
“खूंटा गाड़ गांव मं रहिथस, तब तंंय समाचार ला बोल
तोर ददा के तबियत कइसे, ओकर हालत ला सच खोल?”
सनम किहिस – “मंय दुख का रोवंव, दुख हा आवत धर के रेम
सुख ला हांका पार बलावत, पर आखिर होगेंव बर्बाद –
केकती नामक गाय रिहिस हे, उही गाय गाभिन हो गीस
ओला देख ददा ला फूलय, केकती के कंस जतन बजाय।
बोलय -”गाय बियाही तंहने, देहय दूध कसेली एक
मोर गली नाती बर बढ़िया – पिही पेट भर मिट्ठी दूध।
हम्मन खाबो खीर सोंहारी, तब ले बचिहय कतको दूध
ओकर दही मही बन जाहय, तंहने हेर सकत हन घीव।
पर दुर्घटना इही बीच मं, केकती ला बघवा धर लीस
जहां ददा हा खभर ला अमरिस, गाय पास पहुंचिस तत्काल।
शेर हा गाय ला धरे जम्हड़ के, पीयत हवय सपासप खून
ओला जहां ददा हा देखिस, एकर घलो उबलगे खून।
अपन शक्ति भर लउठी तानिस, शेर ला मारत हेरत दांव
कतका मार शेर हा खावय, ददा उपर कूदिस कर हांव।
शेर ले मनसे के कम ताकत, बघवा लीस ददा के जीव
ओकर पहिली बच नइ पाइस, गाभिन गाय के तलफत जान।”
पिनकू हा दुख मान के कहिथय – “वन के पास करत हम वास
होत हमर बर अति दुख दायक, जीयत जीव बनत हे लाश।
वन्य जीव मन नंगत बाढ़त, एकर ले खतरा बढ़ गीस
फसल मनुष्य अउ पशु ला मारत, निर्भय किंजरत उठा के शीश।
लकड़ी कटई बंद हे कड़कड़, र्इंधन बर लकड़ी नइ पात
वन के पास बसत हन हम्मन, मात्र पेड़ देखत रहि जात।
पर्यावरण के रक्षा खातिर, खूब उपाय करय सरकार
मगर हमर तकलीफ ला देखय, वरना वन तिर रहई बेकार।”
कहिथय सनम -”एक ठन अउ सुन – दुखिया अउ गरीबा के हाल
दुनों एक संग जीवन काटत, रेंगत गली उठा के भाल।
अंकालू ला खुशी नइ पाइस, मृत्यु लेग गिस करके टेक।
हवलदार ला तंय जानत हस – गिरिस कुआं मं भर्रस जेन
ओकर खूब इलाज चलिस हे, पर बन गीस काल ले ग्रास।
पोखन खड़ऊ मं चढ़के रेंगिस, ओला जिमिस धनुष टंकोर
घटना के संबंध मं होवत – अटपट बात गली घर खोर।
मनसे मन चुप चुप गोठियावत – देवारी हा आगिस पास
टोनही मन के जिव करलावत, तभे पांच झन बनगे लाश।