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"गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 16 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मींधू तिर मं मिठई हे थोरिक, ओला खाय छबलू ला दीस
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अब टोनही मन पांचों झन ला, बना के रखिहंय रक्सा भूत
छबलू मार गफेला खावत, पर ला कुटका तक नइ दीस।
+
तंह जीयत ला भूत धराहंय, जीव घलो लेहंय कर नेत।”
पिनकू हा मींधू ला बोलिस -”छबलू ला पटाय हस घूंस
+
पिनकू कुछ मुसका के बोलिस -”घर ला लेत अंधविश्वास
शुभ मुहूर्त के कारण मिलिहय, तोला अवस शासकीय काम”।
+
एकर होत विरोध खूब जम, तभो ले आखिर बनथन दास।
सब झन हंसिन खलखला तंहने पिनकू नापिस रस्ता।
+
एकर पर विश्वास करत शिक्षित वैज्ञानिक ज्ञानी।
आगू तन के दृष्य देख के रहिगे हक्का बक्का।
+
सत्य बतातिन तेमन पीयत – टोना रुढ़ि के मानी।
लगे चुनू के हाथ मं बेली, दू आरक्षक ओकर साथ
+
एकर बाद चलिस पिनकू हा, देखत हवय गांव के काम –
पिनकू पूछिस -”दंग होत हंव, तोर अभी के हालत देख।
+
परब देवारी तिर मं आवत, मनसे मन के बंद अराम।
ककरो ऊपर दुख आथय तब, करथस मदद हड़बड़ा दौड़
+
देवारी के अड़बड़ बूता, ककरो उल नइ पावत ओंठ
कभू गलत रद्दा नइ रेंगस, देत नियम कानून ला साथ।
+
मांईलोगन मन भिड़ पोतत, फूल उतारत भिथिया कोठ।
मगर आज का जुरुम करे हस, लगे हवय का धारा ठोस
+
दूसर दिन पिनकू के संग मं, मेहरुके फट होगिस भेंट
आखिर काय बात ए वाजिब, अपन समझ के फुरिया साफ?”
+
पिनकू हा रचना ला हेरिस, कर दिस मेहरुके अधिकार।
कलपिस चुनू – “नेक मनखे हा, अपन ला बोलत निश्छल नेक
+
कहिथय -”तोर स्तरीय रचना, रखे जउन मं उच्च विचार
ओकर पर यकीन नइ होवय, दुश्चरित्र के लगथय दाग।
+
ओला जहरी हा लहुटा दिस, छापे बर कर दिस इंकार।
तइसे निरपराध हंव मंय हा, पर प्रमाण बर मुश्किल होत
+
एकर ले तोर हालत कइसे, होवत हस का बहुत निराश
मगर तोर ले अतका मांगत – मोर व्यथा पर कर विश्वास।
+
तंय भविष्य मं रचना लिखबे, या लेखन ला करबे बंद?”
खोरबहरा के हत्या होगिस, दूसर व्यक्ति करिस अपराध
+
मेहरुहंस के उत्तर देथय -”करत कृषक मन कृषि के काम
पर अधिनियम हा मोला धांधत, मोर मुड़ी पर डारत दोष।
+
मिहनत कर नंगत व्यय करथंय, पर फल मं पावत नुकसान।
“तीन सौ दो’ धारा हा पकड़त, तब हथकड़ी लगे हे हाथ
+
पर कृषि कर्म ला कभु नइ छोड़य, चलत राह पर कर उत्साह
मोर खिलाफ दर्ज हे प्रकरण, न्यायालय मं मोर बलाव।
+
साहस करके टेकरी देवत, तभे विश्व ला मिलत अनाज।
मंय अब तक विश्वास रखे हंव, जब वास्तव मं मंय निर्दाेष
+
उही कृषक के तिर मंय बसथंव, तब उत्साह रखत हंव पास
मोला दण्ड मिलन नइ पावय, छेल्ला घुमिहंव इज्जत साथ”।
+
कतको रचना लहुट के आवत, मगर दूर मं रहत निराश।
पिनकू बोलिस -”निरदोसी हस, यदि तंय दण्ड मुक्त हो जात
+
सम्पादक रुढ़िवादी होथंय – युग ला छोड़ चलत हें राह
तंय हा दूध भात ला खाबे, हमर हृदय के खिलही फूल।
+
समय विचार बदल जाथय जब, तब ओला करथंय स्वीकार।
पर तंय धोखा मं झन रहिबे, सावधान रहिबे हर टेम
+
चर्चित अउ परिचित लेखक ला, सम्पादक मन स्वीकृति देत
अपन ला सुरक्षित राखे बर, पहिलिच ले प्रबंध कर लेव।”
+
उनकर रचना ला नइ जांचंय, भले लेख होवय निकृष्ट।
तभे अै न सुखमा अउ नीयत, ओकर साथ एक ठन भैंस
+
सम्पादक के कुर्सी पावत, तंहने खुद ला समझत श्रेष्ठ
सुखमा पूछिस -”पहिचानत हव – एहर आय सुंदरिया भैंस?”
+
श्रेष्ठ लेख ला टुकनी फेंकत, साहित्यिक कृति करथंय नष्ट।
चुनू अपन विपदा ला भूलिस, कहिथय – “मंय हा जानत खूब
+
साहित्य मं परिवर्तन आथय, तउन ले सम्पादक अनभिज्ञ
एहर दुर्घटना मं घायल, अब तब छुटतिस एकर प्रान।
+
लेखक जउन करत परिवर्तन, ओहर खावत हे दुत्कार।”
बपरी के उपचार करे बर, तोर पास हम धर के गेन
+
मेहरुहा ठसलग गोठिया के, उहां ले सरके करिस प्रयास
अब भैंसी के तबियत उत्तम, घोसघोस ले मोटाय हे देह।”
+
पिनकू पूछिस -”कहां चलत हस, मोर पास कुछ समय तो मेट?
सुखमा बोलिस -”तुम्हरे कारन, बपरी हा जीयत हे आज
+
देवारी हा लकठा आगे, जावत शहर फटाका लाय
बिगर पुछन्ता के यदि होतिस, खुरच खुरच के देतिस जान।”
+
नंगत असन बिसा के लाबे, हमूं ला देबे धांय बजाय।”
पिनकू हा सुखमा ला बोलिस -”तंय हा करे हमर तारीफ
+
मेहरुकिहिस -”मोर ला सुन तंय मंय खैरागढ़ जावत आज
ओकर ले हम गदगद होवत, मगर चुनू के दुर्गति देख
+
घुरुवा मन के चलत अदालत, ओकर अंतिम निर्णय आज।
मरत रथय के जीव बचाथय, अउ असहाय के टेकनी आय
+
एकर पहिली बल्ला मालिक, घुरुवा मन के बनिन गवाह
खुद हा निरपराध हे तब ले, फंसगे हत्या के अपराध।”
+
मुजरिम मन हा बच जावय कहि, ओमन बोल के हेरिन राह।
सुखमा बोलिस “दंग होत हंव – वाकई होय गलत अनियाव
+
मेहरुहवय तेन तिर पहुंचिन बिरसिंग मगन घुरुवा बिसनाथ
जे मनसे ईनाम ला पातिस, ओला कार मिलत हे दण्ड!
+
एमन अब खैरागढ़ जावत, बपुरा मन असहाय अनाथ।
पर मोला विश्वास अभी तक – चुनू करे हे हित के काम
+
न्यायालय के तिर मं पहुंचिन, खेदू संग होगिस मुठभेड़
ओकर फल मं अच्छा मिलिहय, सब प्रकरण हो जही समाप्त।”
+
खेदू ला बिसनाथ हा पूछिस -”साफ फोर तंय खुद के हाल।
सब झन अपन राह पर रेंगिन, पिनकू हा सुन्तापुर गांव
+
तंय अपराध करे हस कइ ठक, न्यायालय का दण्ड ला दीस
ओला जहां सनम हा मिलथय, पूछत हवय गांव के हाल –
+
कतका रुपिया के जुर्माना, कतका वर्ष के कारावास?”
“खूंटा गाड़ गांव मं रहिथस, तब तंंय समाचार ला बोल
+
खेदू बफलिस -”अटपट झन कह, तुम्हर असन मंय नइ अभियुक्त
तोर ददा के तबियत कइसे, ओकर हालत ला सच खोल?”
+
मोर बिगाड़ कोन हा करिहय, मंय किंजरत फिक्कर ले मुक्त।
सनम किहिस – “मंय दुख का रोवंव, दुख हा आवत धर के रेम
+
छेरकू हा आश्वासन देइस ओला कर दिस पूरा।
सुख ला हांका पार बलावत, पर आखिर होगेंव बर्बाद –
+
जतका अपराधिक प्रकरण तेमन बह गिन जस पूरा।
केकती नामक गाय रिहिस हे, उही गाय गाभिन हो गीस
+
यने राज्य शासन वापिस लिस – जनहित मं अपराध ला मोर
ओला देख ददा ला फूलय, केकती के कंस जतन बजाय।
+
न्यायालय हा धथुवा रहिगे, मोर उड़त सब दिशा मं सोर।”
बोलय -”गाय बियाही तंहने, देहय दूध कसेली एक
+
बिरसिंग कथय -”समझ ले बाहिर, जब तंय वास्तव मं अभियुक्त
मोर गली नाती बर बढ़िया – पिही पेट भर मिट्ठी दूध।
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अर्थदण्ड अउ जेल मं जातेस, पर हरहा अस किंजरत मुक्त।
हम्मन खाबो खीर सोंहारी, तब ले बचिहय कतको दूध
+
हम निर्दाेष हवन सब जानत, तभो ले फांसत हे कानून
ओकर दही मही बन जाहय, तंहने हेर सकत हन घीव।
+
हम्मन निर्णय मं हा पावत – इही सोच तन होवत सून।”
पर दुर्घटना इही बीच मं, केकती ला बघवा धर लीस
+
घुरुवा मन के समय अैमस तंह, न्यायालय के अंदर गीन
जहां ददा हा खभर ला अमरिस, गाय पास पहुंचिस तत्काल।
+
इनकर निर्णय ला जाने बर, कतको मनसे भीतर गीन।
शेर हा गाय ला धरे जम्हड़ के, पीयत हवय सपासप खून
+
मोतिम न्यायाधीष उपस्थिति, मुजरिम मन कटघरा मं ठाड़
ओला जहां ददा हा देखिस, एकर घलो उबलगे खून।
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इंकर हृदय हा धकधक होवत – अब तब टूटही बिपत पहाड़।
अपन शक्ति भर लउठी तानिस, शेर ला मारत हेरत दांव
+
हरिन डरत हे देख शिकारी, मछरी डरत देख के जाल
कतका मार शेर हा खावय, ददा उपर कूदिस कर हांव।
+
टंगिया देख पेड़ थर्राथय, हंसिया ले भय खात पताल।
शेर ले मनसे के कम ताकत, बघवा लीस ददा के जीव
+
न्यायाधीष हा निर्णय देइस – “हाजिर हें अपराधी जेन
ओकर पहिली बच नइ पाइस, गाभिन गाय के तलफत जान।”
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तुम पर चार लगे हे धारा, जेहर एकदम कड़कड़ ठोस।
पिनकू हा दुख मान के कहिथय “वन के पास करत हम वास
+
पांच सौ छै बी- तीन सौ एकचालिस, एमन दुनों सिद्ध नइ होय
होत हमर बर अति दुख दायक, जीयत जीव बनत हे लाश।
+
तब आरोप मुड़ी ले बाहिर, दण्ड करन पावत नइ बेध।
वन्य जीव मन नंगत बाढ़त, एकर ले खतरा बढ़ गीस
+
तीन सौ तिरपन – दू सौ चौरनबे, ए अपराध प्रमाणित होय
फसल मनुष्य अउ पशु ला मारत, निर्भय किंजरत उठा के शीश।
+
हर अभियुक्त जेल ला भोगव गिन दू साल माह बस तीन।
लकड़ी कटई बंद हे कड़कड़, र्इंधन बर लकड़ी नइ पात
+
अजम वकील सन्न अस रहिगे, अभिभाषक कण्टक मुसकात
वन के पास बसत हन हम्मन, मात्र पेड़ देखत रहि जात।
+
मुजरिम मन कारागृह जावत, जेला “नरख’ कथंय सब लोग।
पर्यावरण के रक्षा खातिर, खूब उपाय करय सरकार
+
न्यायालय ले निकलिस मेहरु, मिलिन बहल बेदुल दू जीव
मगर हमर तकलीफ ला देखय, वरना वन तिर रहई बेकार।”
+
बेदुल हा खेदू ला खोजत, अपन साथ रख पसिया पेज।
कहिथय सनम -”एक ठन अउ सुन – दुखिया अउ गरीबा के हाल
+
मेहरुचहत बात कुछ कहना, पर बेदुल के पर तन ध्यान
दुनों एक संग जीवन काटत, रेंगत गली उठा के भाल।
+
आखिर मं खेदू हा मिल गिस, ओकर बढ़े भयंकर रौब।
अंकालू ला खुशी नइ पाइस, मृत्यु लेग गिस करके टेक।
+
मनखे मन जुरियाय तिंकर तिर, अपन शक्ति के मारत डींग
हवलदार ला तंय जानत हस गिरिस कुआं मं भर्रस जेन
+
दमऊ के टोंटा ला चपके बर, दफड़ा करथय खूब अवाज।
ओकर खूब इलाज चलिस हे, पर बन गीस काल ले ग्रास।
+
खेदू किहिस -”खूब मंय चर्चित, दैनिक पत्र मं छपगे नाम
पोखन खड़ऊ मं चढ़के रेंगिस, ओला जिमिस धनुष टंकोर
+
मंय हा कतको जुरुम करे हंव, कई जन के मारे हंव जान।
घटना के संबंध मं होवत – अटपट बात गली घर खोर।
+
भाजी भांटा ला पोइलत तब आत्मा मं न कसक न पीर
मनसे मन चुप चुप गोठियावत – देवारी हा आगिस पास
+
मनसे ला नंगत झोरिया के, मंय पावत हंव नव उत्साह।”
टोनही मन के जिव करलावत, तभे पांच झन बनगे लाश।
+
ओ तिर खड़े हवंय जे मनखे, क्रूर कथा सुन आंख घुमात
 +
उनकर रुआं खड़े होवत डर, मन मन कांपत पान समान।
 
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16:45, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

अब टोनही मन पांचों झन ला, बना के रखिहंय रक्सा भूत
तंह जीयत ला भूत धराहंय, जीव घलो लेहंय कर नेत।”
पिनकू कुछ मुसका के बोलिस -”घर ला लेत अंधविश्वास
एकर होत विरोध खूब जम, तभो ले आखिर बनथन दास।
एकर पर विश्वास करत शिक्षित वैज्ञानिक ज्ञानी।
सत्य बतातिन तेमन पीयत – टोना रुढ़ि के मानी।
एकर बाद चलिस पिनकू हा, देखत हवय गांव के काम –
परब देवारी तिर मं आवत, मनसे मन के बंद अराम।
देवारी के अड़बड़ बूता, ककरो उल नइ पावत ओंठ
मांईलोगन मन भिड़ पोतत, फूल उतारत भिथिया कोठ।
दूसर दिन पिनकू के संग मं, मेहरुके फट होगिस भेंट
पिनकू हा रचना ला हेरिस, कर दिस मेहरुके अधिकार।
कहिथय -”तोर स्तरीय रचना, रखे जउन मं उच्च विचार
ओला जहरी हा लहुटा दिस, छापे बर कर दिस इंकार।
एकर ले तोर हालत कइसे, होवत हस का बहुत निराश
तंय भविष्य मं रचना लिखबे, या लेखन ला करबे बंद?”
मेहरुहंस के उत्तर देथय -”करत कृषक मन कृषि के काम
मिहनत कर नंगत व्यय करथंय, पर फल मं पावत नुकसान।
पर कृषि कर्म ला कभु नइ छोड़य, चलत राह पर कर उत्साह
साहस करके टेकरी देवत, तभे विश्व ला मिलत अनाज।
उही कृषक के तिर मंय बसथंव, तब उत्साह रखत हंव पास
कतको रचना लहुट के आवत, मगर दूर मं रहत निराश।
सम्पादक रुढ़िवादी होथंय – युग ला छोड़ चलत हें राह
समय विचार बदल जाथय जब, तब ओला करथंय स्वीकार।
चर्चित अउ परिचित लेखक ला, सम्पादक मन स्वीकृति देत
उनकर रचना ला नइ जांचंय, भले लेख होवय निकृष्ट।
सम्पादक के कुर्सी पावत, तंहने खुद ला समझत श्रेष्ठ
श्रेष्ठ लेख ला टुकनी फेंकत, साहित्यिक कृति करथंय नष्ट।
साहित्य मं परिवर्तन आथय, तउन ले सम्पादक अनभिज्ञ
लेखक जउन करत परिवर्तन, ओहर खावत हे दुत्कार।”
मेहरुहा ठसलग गोठिया के, उहां ले सरके करिस प्रयास
पिनकू पूछिस -”कहां चलत हस, मोर पास कुछ समय तो मेट?
देवारी हा लकठा आगे, जावत शहर फटाका लाय
नंगत असन बिसा के लाबे, हमूं ला देबे धांय बजाय।”
मेहरुकिहिस -”मोर ला सुन तंय – मंय खैरागढ़ जावत आज
घुरुवा मन के चलत अदालत, ओकर अंतिम निर्णय आज।
एकर पहिली बल्ला मालिक, घुरुवा मन के बनिन गवाह
मुजरिम मन हा बच जावय कहि, ओमन बोल के हेरिन राह।
मेहरुहवय तेन तिर पहुंचिन – बिरसिंग मगन घुरुवा बिसनाथ
एमन अब खैरागढ़ जावत, बपुरा मन असहाय अनाथ।
न्यायालय के तिर मं पहुंचिन, खेदू संग होगिस मुठभेड़
खेदू ला बिसनाथ हा पूछिस -”साफ फोर तंय खुद के हाल।
तंय अपराध करे हस कइ ठक, न्यायालय का दण्ड ला दीस
कतका रुपिया के जुर्माना, कतका वर्ष के कारावास?”
खेदू बफलिस -”अटपट झन कह, तुम्हर असन मंय नइ अभियुक्त
मोर बिगाड़ कोन हा करिहय, मंय किंजरत फिक्कर ले मुक्त।
छेरकू हा आश्वासन देइस ओला कर दिस पूरा।
जतका अपराधिक प्रकरण तेमन बह गिन जस पूरा।
यने राज्य शासन वापिस लिस – जनहित मं अपराध ला मोर
न्यायालय हा धथुवा रहिगे, मोर उड़त सब दिशा मं सोर।”
बिरसिंग कथय -”समझ ले बाहिर, जब तंय वास्तव मं अभियुक्त
अर्थदण्ड अउ जेल मं जातेस, पर हरहा अस किंजरत मुक्त।
हम निर्दाेष हवन सब जानत, तभो ले फांसत हे कानून
हम्मन निर्णय मं हा पावत – इही सोच तन होवत सून।”
घुरुवा मन के समय अैमस तंह, न्यायालय के अंदर गीन
इनकर निर्णय ला जाने बर, कतको मनसे भीतर गीन।
मोतिम न्यायाधीष उपस्थिति, मुजरिम मन कटघरा मं ठाड़
इंकर हृदय हा धकधक होवत – अब तब टूटही बिपत पहाड़।
हरिन डरत हे देख शिकारी, मछरी डरत देख के जाल
टंगिया देख पेड़ थर्राथय, हंसिया ले भय खात पताल।
न्यायाधीष हा निर्णय देइस – “हाजिर हें अपराधी जेन
तुम पर चार लगे हे धारा, जेहर एकदम कड़कड़ ठोस।
पांच सौ छै बी- तीन सौ एकचालिस, एमन दुनों सिद्ध नइ होय
तब आरोप मुड़ी ले बाहिर, दण्ड करन पावत नइ बेध।
तीन सौ तिरपन – दू सौ चौरनबे, ए अपराध प्रमाणित होय
हर अभियुक्त जेल ला भोगव – गिन दू साल माह बस तीन।
अजम वकील सन्न अस रहिगे, अभिभाषक कण्टक मुसकात
मुजरिम मन कारागृह जावत, जेला “नरख’ कथंय सब लोग।
न्यायालय ले निकलिस मेहरु, मिलिन बहल बेदुल दू जीव
बेदुल हा खेदू ला खोजत, अपन साथ रख पसिया पेज।
मेहरुचहत बात कुछ कहना, पर बेदुल के पर तन ध्यान
आखिर मं खेदू हा मिल गिस, ओकर बढ़े भयंकर रौब।
मनखे मन जुरियाय तिंकर तिर, अपन शक्ति के मारत डींग
दमऊ के टोंटा ला चपके बर, दफड़ा करथय खूब अवाज।
खेदू किहिस -”खूब मंय चर्चित, दैनिक पत्र मं छपगे नाम
मंय हा कतको जुरुम करे हंव, कई जन के मारे हंव जान।
भाजी भांटा ला पोइलत तब – आत्मा मं न कसक न पीर
मनसे ला नंगत झोरिया के, मंय पावत हंव नव उत्साह।”
ओ तिर खड़े हवंय जे मनखे, क्रूर कथा सुन आंख घुमात
उनकर रुआं खड़े होवत डर, मन मन कांपत पान समान।