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गरीबों की होली / राजकिशोर सिंह

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होली का त्योहार देऽकर पूए पर जी आया है
ठंढा-ठंढा चूल्हा चौका ऽिलता मन घबराया है
बच्चों की जिद पूए ऽातिर चलती रही सुबह से शाम
माता का दिल पिघल रहा था दिल को चैन नहीं आराम
पिछली होली बिन पूए की बीती थी है याद अभी
चीऽ रहे हैं जोर-जोर से पिफर माता के दर्द सभी
सीऽा नहीं उधर मांगना लेन-देन का नहीं चलन
सोच-सोच पूए की बावत टूट रहा है माँ का मन
निधर््नता की चोट सहन करना माँ की होती तकदीर
होठों पर आहें रहती है आँऽों से बहता है नीर
दिन बीता तो माँ के मन में उमड़ उठी छोटी सी बात
जन्म दिवस पर छोटू जी को दस का नोट मिली सौगात
उसी पैसे से पूए ऽातिर मंगवाया थोड़ा सामान
चढ़ी कड़ाही चूल्हे उफपर होली का करने सम्मान
बच्चों की संख्या से कम है पूए की संख्या हे राम
ऽाने के बदले बच्चों ने किया हाय छूने का काम
निधर््नता का लोप जगत से कब होगा बतलाए कौन
ध्न ही केवल बोल रहा है ध्न वाले रहते हैं मौन।