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"गर अपने प्यार का सागर सनम गहरा नहीं होता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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तो पानी आज तक चुपचाप यूँ ठहरा नहीं होता। | तो पानी आज तक चुपचाप यूँ ठहरा नहीं होता। | ||
− | महक उठती हवा सारी | + | महक उठती हवा सारी फ़िज़ा रंगीन हो जाती, |
गुलाबों पर जो काँटों का सदा पहरा नहीं होता। | गुलाबों पर जो काँटों का सदा पहरा नहीं होता। | ||
− | नदी | + | नदी ख़ुद ही स्वयं को शुद्ध कर लेती अगर पानी, |
− | उन्हीं दो चार बाँधों के यहाँ ठहरा नहीं होता। | + | उन्हीं दो-चार बाँधों के यहाँ ठहरा नहीं होता। |
− | कभी तो चीख | + | कभी तो चीख मज़लूमों की उस तक भी पहुँचती गर, |
हमारे देश का ये हुक्मराँ बहरा नहीं होता। | हमारे देश का ये हुक्मराँ बहरा नहीं होता। | ||
− | न होते हाथ बुनकर के न | + | न होते हाथ बुनकर के न रंगरेज़ों के रंग होते, |
तो खादी का तिरंगा देश में फहरा नहीं होता। | तो खादी का तिरंगा देश में फहरा नहीं होता। | ||
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12:45, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
गर अपने प्यार का सागर सनम गहरा नहीं होता।
तो पानी आज तक चुपचाप यूँ ठहरा नहीं होता।
महक उठती हवा सारी फ़िज़ा रंगीन हो जाती,
गुलाबों पर जो काँटों का सदा पहरा नहीं होता।
नदी ख़ुद ही स्वयं को शुद्ध कर लेती अगर पानी,
उन्हीं दो-चार बाँधों के यहाँ ठहरा नहीं होता।
कभी तो चीख मज़लूमों की उस तक भी पहुँचती गर,
हमारे देश का ये हुक्मराँ बहरा नहीं होता।
न होते हाथ बुनकर के न रंगरेज़ों के रंग होते,
तो खादी का तिरंगा देश में फहरा नहीं होता।